

सरायकेला: देश के कई राज्यों की तरह झारखंड और पश्चिम बंगाल में भी मां मनसा देवी की पूजा-अर्चना बड़े धूमधाम से की जा रही है। श्रावण संक्रांति से शुरू होने वाली यह पूजा भादो और आश्विन महीने की संक्रांति तक चलती है।
घटवारी और बलि की परंपरा

पूजा की शुरुआत ‘घटवारी’ ले जाने की परंपरा से होती है, जिसमें महिलाएं और पुरुष विभिन्न तालाबों में पूजा करने के बाद कलश में पानी भरकर गाजे-बाजे के साथ मंदिर पहुंचते हैं। रात भर मां की पूजा-अर्चना और पुष्पांजलि का विशेष आयोजन होता है। सुबह भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर बतख और बकरे की बलि देते हैं, जो एक परंपरागत प्रथा है। इसके बाद, मां मनसा देवी की घट को तालाब में विसर्जित किया जाता है।

नागों के आतंक से मुक्ति देती हैं मां मनसा
मां मनसा को नागों की देवी माना जाता है, और यह मान्यता है कि उनकी पूजा-अर्चना से नागों के आतंक से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, मां की कृपा से सुख, समृद्धि, धन-वैभव और शांति की प्राप्ति होती है।
यह भी बताया गया है कि पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के चौड़दा गांव के सूत्रधर कलाकार चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में साल भर मां मनसा की मूर्तियां बनाते हैं, जिनकी शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में काफी मांग है।
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