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आज २९ सितंबर विश्व कद्दू दिवस के रूप में मनाया जाता है।

ByAdmin Office

Sep 29, 2022

 

 

*कद्दू की सब्जी का भारतीय व्यंजन में बहुत महत्व हैं। एक तरफ जहां ये भारतीय ब्राह्मणों का प्रिय भोजन है वहीं दूसरी ओर इसको आयुर्वेद में औषधीय फल के रूप में महत्व दिया गया है। तमाम तरह की विशेषताओं वाले इस सब्जी के लिए एक विशेष दिन भी तय किया गया है। आज 29 सितंबर को विश्व कद्दू दिवस मनाया जाता है।*

*Pumpkin Seeds Health Benefits:*

कद्दू के बीच देखने में जरूर छोटे होते हैं लेकिन उनकी थोड़ी सी मात्रा आपके शरीर में मैग्नीशियम, जिंक और फैट की कमी को पूरा कर देते हैं. अगर हम इसके बीजा का सेवन करते हैं तो इससे हम हृदय रोग, प्रोस्टेट रोग और कैंसर जैसी बीमारी के खतरे को कम कर सकते हैं.

*मैग्नीशियम से भरपूर*
*एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर*
*कैंसर के जोखिम में फायदेमंद*
*प्रोस्टेट और मूत्राशय के स्वास्थ्य में सुधार*

*पोषक तत्वों से भरपूर*

कद्दू के बीच कई तरह के पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं. एक औंस (28 ग्राम) बिना छिलके वाले कद्दू के बीज में करीब 151 कैलोरी मौजूद रहती है. इसमें फाइबर, कार्ब्स, प्रोटीन, वसा, विटामिन, फास्फोरस, मैग्नीशियम, मैग्नीज, आयरन समेत कई ऐसे गुणकारी तत्व होते हैं जो कि हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी हैं.

*धार्मिक और पौराणिक महत्व भी*

हिंदू समुदाय में कद्दू का पौराणिक महत्व भी है। कई धार्मिक अनुष्ठानों में जहां पशुबलि नहीं दी जाती है, वहां कद्दू को पशु के प्रतीक रूप में मानते हुए इसकी बलि दी जाती है। डॉ. त्रिपाठी के अनुसार एक लोक मान्यता यह भी है कि कददू को ज्येष्ठ पुत्र माना जाता है। देश के कई प्रांतों में महिलाएं तो इसे काटने के बारे में सोच भी नहीं सकतीं। पूरब के जिलों में मान्यता है कि किसी महिला द्वारा कद्दू को काटने का आशय अपने बड़े बेटे की बलि देने जैसा हो जाएगा। इसलिए यहां की महिलाएं किसी पुरुष से पहले कद्दू के दो टुकड़े करवाती है और फिर वह सब्जी के लिए दो बड़े टुकड़ों के छोटे-छोटे टुकड़े करती हैं।

*तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है-*

*इहां कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं। जो तरजनी देखि मरि जांहीं।।*

*देखि कुठारु सरासन बाना। मै कछु कहा सहित अभिमाना।।*

इतिहास से लेकर भारतीय समाज तक में कद्दू को वह जगह नहीं मिली जिसका यह फल हकदार है। रामचरित मानस की इन पंक्तियों में परशुराम के अभिमान को चूर करने के लिए कुम्हड़ बतिया यानी फूल से फल में बदलती कद्दू की बतिया को कमजोरी का प्रतीक बताया है। इतना कमजोर कि जिसे उंगली का इशारा भी दिखा दो तो वह मुरझा जाए। कद्दू को और भी ज्यादा अपमानजनक ढंग से पेश करने का काम कुछ उत्तर भारतीय कहावतों ने भी किया। मसलन घरों में जब कभी कोई किसी खाने को लेकर ना-नुकुर करता तो बड़े उसको बोल देते-


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