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ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में आज मुस्लिम पक्ष को करनी है बहस पूरी, हिंदू पक्ष करेगा काउंटर**

ByAdmin Office

Aug 24, 2022

*ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में आज मुस्लिम पक्ष को करनी है बहस पूरी, हिंदू पक्ष करेगा काउंटर**

वाराणसी: ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी केस की सुनवाई अब मुगल बादशाह औरंगजेब पर ही घूम रही है. बीते 2 दिनों से न्यायालय के सामने अपनी बात रख रहे अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी के वकील बार -बार सिर्फ मस्जिद को औरंगजेब द्वारा अधिग्रहित किए जाने के बाद इसे वक्फ की संपत्ति बता रहे हैं.

उनका कोर्ट में कहना था कि वर्ष 1669 में बादशाह औरंगजेब की सत्ता थी.

इस तरह से उस समय की जो भी संपत्ति थी वह बादशाह औरंगजेब की थी, बादशाह औरंगजेब ने ज्ञानवापी की संपत्ति वक्फ को दी तो वहां मस्जिद बनी. फिलहाल इस मामले में कल भी मुस्लिम पक्ष की सुनवाई पूरी नहीं हो पाई और आज न्यायालय ने 11:30 बजे का वक्त सुनवाई पूरा करने के लिए दिया है. शुरुआत के आधा घंटा मुस्लिम पक्ष अपनी बातें रखेगा और उनके दलीलों के पूरा होने के बाद हिंदू पक्ष इस पर काउंटर दाखिल करेगा.

मुस्लिम पक्ष की तरफ से लगातार ज्ञानवापी को औरंगजेब द्वारा अधिग्रहित की गई वक्फ की संपत्ति बताया जा रहा है लेकिन वादिनी महिलाओं के वकीलों का कहना है कि ज्ञानवापी की संपत्ति को वक्फ की संपत्ति कहना एक बुहत बड़ी धोखाधड़ी है. अगर औरंगजेब ने ज्ञानवापी मस्जिद की संपत्ति वक्फ की थी तो वह डीड कोर्ट में पेश की जाए. बताया जाए कि इन कागजात के सहारे औरंगजेब द्वारा वक्फ की गई संपत्ति पर मस्जिद बनी. फिलहाल वाराणसी के जिला जज की कोर्ट में हिंदू पक्ष की दलीलों पर मुस्लिम पक्ष की जवाबी बहस आज पूरी हो जाएगी. उसके बाद मुस्लिम पक्ष की जवाबी बहस पर हिंदू पक्ष अपना प्रति उत्तर दाखिल करेगा.

22 अगस्त से लगातार जारी मसाजिद कमेटी की जवाबी बहस में एडवोकेट शमीम अहमद, रईस अहमद, मुमताज अहमद, मिराजुद्दीन सिद्दकी और एजाज अहमद ने कहा कि वर्ष 1936 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ था. वर्ष 1944 के गजट में यह बात सामने आई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद का नाम शाही मस्जिद आलमगीर है. संपत्ति शाहंशाह आलमगीर यानी बादशाह औरंगजेब की बताई गई थी. वक्फ करने वाले के तौर पर भी बादशाह आलमगीर का नाम दर्ज था. इस तरह से बादशाह औरंगजेब द्वारा 1400 साल पुराने शरई कानून के तहत वक्फ की गई संपत्ति पर वर्ष 1669 में मस्जिद बनी और तब से लेकर आज तक वहां नमाज पढ़ी जा रही है.

इसके अलावा 1883-84 में अंग्रेजों के शासनकाल में जब बंदोबस्त लागू हुआ तो सर्वे हुआ और आराजी नंबर बनाया गया. आराजी नंबर 9130 में उस समय भी दिखाया गया था कि वहां मस्जिद है, कब्र है, कब्रिस्तान है, मजार है, कुआं है. पुराने मुकदमों में भी यह डिसाइड हो चुका है कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की प्रॉपर्टी है. इसलिए श्रृंगार गौरी का मुकदमा सिविल कोर्ट में सुनवाई योग्य नहीं है.
सरकार भी तो इसे वक्फ प्रॉपर्टी मानती है, इसी वजह से काशी विश्वनाथ एक्ट में मस्जिद को नहीं लिया गया. वर्ष 2021 में मस्जिद और मंदिर प्रबंधन के बीच जमीन की अदला-बदली हुई वह भी वक्फ प्रॉपर्टी मान कर ही की गई. ऐसे में खाली कह देने मात्र से ज्ञानवापी मस्जिद किसी और की नहीं हो जाती है. वह संपत्ति अल्लाह को मानने वालों यानी मुस्लिमों की थी है और रहेगी.

हिंदू पक्ष के एडवोकेट विष्णु शंकर जैन का कहना है कि मुस्लिम पक्ष जवाबी बहस में अपनी ही दलीलों में फस चुका है. उन्होंने कोर्ट में कागजात पेश कर बताया है कि ज्ञानवापी की संपत्ति वक्फ नंबर 100 के तौर पर दर्ज है, यह एक बहुत बड़ा फ्रॉड है. उन्होंने ज्ञानवापी से लगभग दो किलोमीटर दूर स्थित आलमगीर मस्जिद के कागजात पेश किए हैं.
यह मस्जिद बिंदु माधव मंदिर को तोड़ कर बनाई गई थी. सभी जानते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद का नाम आलमगीर मस्जिद नहीं है. अब वह ज्ञानवापी मस्जिद को आलमगीर मस्जिद बता रहे हैं. औरंगजेब ने यदि ज्ञानवापी मस्जिद की संपत्ति का वक्फ किया था तो वह डीड लाकर दिखाई जाए, लेकिन मसाजिद कमेटी नहीं दिखा पाई. मिनिस्ट्री ऑफ माइनॉरिटी अफेयर्स की वेबसाइट में भी कहीं यह उल्लेख नहीं है कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की प्रॉपर्टी है. मुस्लिम पक्ष की कहानी पूरी तरह से फर्जी है और उनकी जवाबी बहस पूरी होने के बाद हम प्रति उत्तर दाखिल करेंगे।


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