

बबली सिंह चौहान
यह सोच कि ‘बीवियां तो 10 आ जाएंगी, लेकिन माँ दूसरी नहीं आएगी’, अक्सर कही जाती है, लेकिन इसमें एक बड़ी कमी है। अगर यही बात आपके पिता भी कहते, तो क्या आज आपकी कई सारी माँ होतीं? यह सोचना ही कितना अजीब लगता है। सच तो यह है कि माँ और पत्नी दोनों का स्थान हमारे जीवन में अद्वितीय और बराबर है।

जिस तरह माँ का फर्ज कोई पत्नी नहीं निभा सकती, उसी तरह पत्नी का फर्ज भी माँ नहीं निभा सकती। दोनों की भूमिकाएं अलग हैं, लेकिन दोनों ही आपके जीवन को पूर्ण करती हैं। एक ने आपको इस दुनिया में लाया, और दूसरी ने अपना सब कुछ छोड़कर आपके लिए, आपके घर आई।

माँ का सम्मान इसलिए है क्योंकि उन्होंने आपको जन्म दिया और पाला-पोसा, वहीं पत्नी का सम्मान इसलिए है क्योंकि उसने आपके साथ जीवन का सफर तय करने का फैसला किया। दोनों के त्याग और प्रेम की तुलना नहीं की जा सकती। इसलिए, दोनों को समान सम्मान और प्यार देना सीखे।
There is no ads to display, Please add some





Post Disclaimer
स्पष्टीकरण : यह अंतर्कथा पोर्टल की ऑटोमेटेड न्यूज़ फीड है और इसे अंतर्कथा डॉट कॉम की टीम ने सम्पादित नहीं किया है
Disclaimer :- This is an automated news feed of Antarkatha News Portal. It has not been edited by the Team of Antarkatha.com