

जब सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण होता है तो हिंदू धर्म में घरों में खाने की चीजों या पानी के बर्तनों पर दरबा या कुशा घास रखते हैं।
कुछ हिंदुओं के बीच एक लोकप्रिय धारणा है कि चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के बाद घर में रखा भोजन और पानी दूषित हो जाता है और वो सेवन करने योग्य नहीं होते है। ग्रहण के दौरान भोजन की ऐसी क्षति और दूषित होने से बचने के लिए हिंदू धर्म में खाने में कुशा रखते हैं। इस घास को तमिल में दरबाई, हिंदी में डाभ या दुर्बा और संस्कृत में कुशा के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी में कॉटन वूल ग्रास कहते हैं।

*आइए जानते हैं, ग्रहण के दौरान भोजन और जल में कुशा रखने के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण को।*

*शास्त्रों में बताया है महत्व*
शास्त्रों में लिखा है कि- पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्तौ भवेच्छुचि:। कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया।।
इस श्लोक का अर्थ ये है कि कुश के नहीं होने से पूजा विफल हो जाती है। हर एक गृहस्थ व्यक्ति को कुशग्रहिणी अमावस्या पर कुशा घास तोड़कर संग्रहित करनी चाहिए। पूरे साल इसी घास का उपयोग करते हुए पूजन-कर्म करना चाहिए। पुराने समय में अधिकतर लोग इस परंपरा को निभाते थे। आज बदलते समय की वजह से बहुत ही कम लोग ये परंपरा जानते हैं और कुछ ही लोग इस परंपरा को निभाते हैं। आजकल बहुत कम लोग इस परंपरा के बारे में जानते हैं।
*कुशा में बदल गए थे सीता जी के केश*
मान्यता है कि जब सीता माता पृथ्वी में समाई थीं तो भगवान राम जल्दी से दौड़कर उन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु उनके हाथ में केवल सीता माता का केश ही आ पाया। ये केश राशि ही कुश के रूप में परिवर्तित हो गई। ग्रहण काल में हर वस्तु में कुश डालने की मान्यता है। कुश का महत्व सनातन धर्म के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत अधिक है।
*पुरुष-महिला को भी धारण करनी चाहिए कुशा*
भोजन और पानी पर कुशा रखने से उन किरणों का विपरीत असर नहीं पड़ता। इस दौरान व्यक्ति को कुश का तिनका अपने शरीर से स्पर्श करते हुए भी रखना चाहिए। पुरुष अपने कान के ऊपर कुश का तिनका लगा सकते हैं, वहीं महिलाएं अपनी चोटी में इसे धारण करके रखें।
*सेहत को फायदे*
कुश से बने आसन पर बैठ कर साधना करने से आरोग्य, यश और तेज की वृद्धि होती है। साधक की एकाग्रता भंग नहीं होती। कुश मूल की माला से जाप करने से अंगुलियों के एक्यूप्रेशर बिंदु दबते रहते हैं, जिससे शरीर में रक्त संचार ठीक रहता है। देव पूजन, यज्ञ, हवन, यज्ञोपवीत, ग्रहशांति पूजन कार्यो में रुद्र कलश एवं वरुण कलश में जल भर कर सर्वप्रथम कुश डालते हैं। कलश में कुश डालने का वैज्ञानिक पक्ष यह है कि कलश में भरा हुआ जल लंबे समय तक जीवाणु से मुक्त रहता है
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