

* 80 करोड़ लेकर भी लोगों को नहीं दे पा रहा है संपूर्ण दवाएं: गरीब मरीज बाजार से महंगे दामों पर दवाएं खरीदने को हो रहा है मजबूर।*
केजीएमयू में रोजाना आने वाले हजारों मरीजों को सस्ती दवाओं के लिए हो रही हुज्जत की चंद बानगी हैं। ये नौबत तब है, जब संस्थान को जरूरतमंद मरीजों की दवाओं के लिए करीब 80 करोड़ रुपये बजट मिलता है।
उत्तर प्रदेश के सीतापुर से केजीएमयू में इलाज के लिए आईं 32 साल की आरती वाल्मीकि दिल की गंभीर बीमारी से जूझ रही हैं। ओपीडी में दिखाने पर डॉक्टर ने कुछ जरूरी दवाएं लिखीं, जिन्हें लेने वे अंदर के स्टोरी पर गईं तो स्टाफ ने दवाओं की उपलब्धता से इनकार करते हुए हाथ खड़े कर दिए। मजबूरन आरती को बाहर खुले मेडिकल स्टोर से 900 रुपये खर्च कर दवा लेनी पड़ी।

इसी तरह गोला से आए अशफाक शरीर में सूचन की दिक्कत से परेशान हैं। मेडिसिन विभाग में दिखाने पर डॉक्टर ने पांच तरह की दवाएं लिखीं, लेकिन ओपीडी फॉर्मेसी में एक नहीं मिली। बाहर निकले तो तीमारदारों ने प्राइवेट स्टोर से 700 रुपये खर्च कर दो हफ्ते की दवाएं खरीदीं।

ये केजीएमयू में रोजाना आने वाले हजारों मरीजों को सस्ती दवाओं के लिए हो रही हुज्जत की चंद बानगी हैं। ये नौबत तब है, जब संस्थान को जरूरतमंद मरीजों की दवाओं के लिए करीब 80 करोड़ रुपये बजट मिलता है। केजीएमयू की 28 विभागों की ओपीडी में रोजाना पांच हजार से अधिक मरीज आते हैं। संस्थान को हर साल सरकार 928 करोड़ बजट देती है। इसमें अफसर 80 से 90 करोड़ की दवाएं खरीदते हैं। मगर हड्डी, गठिया, नेत्र रोग, जनरल सर्जरी, पीडियाट्रिक, सर्जरी, मेडिसिन और ईएनटी में सामान्य दवाएं नहीं हैं। ट्रॉमा, लारी, सीटीवीएस में इंजेक्शन और मेडिकल उपकरण तक का संकट है।
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