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सीतामढ़ी में 1857 के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी  की मूर्ति स्थापित,लोगों में इन तीनो विद्रोहियों को किया नंमन

ByAdmin Office

Sep 21, 2022

 

अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध 1857 के विद्रोह में कई नामचीन योद्धा आगे आये तो कई ऐसे योद्धा थे जो भारतीय इतिहास के पन्नो में गुमनाम रह गए।

अंग्रेजो ने उनके विद्रोह को आंदोलन का नाम नही देकर उसे डाकू और लुटेरा सावित कर उसके बलिदान को व्यर्थ साबित करने की कोशिश की।ऐसे ही बीर योद्धाओं में बिहार के नवादा जिला के जवाहिर और एतवा थे जिन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने डाकू साबित करने की कोशिश की।

जवाहिर रजवार नवादा जिले के नारदीगंज थाना के पसई गांव के रहने वाले थे। जबकि एतवा रोह थाना के कर्णपुर गांव निवासी थे। 1857 में जवाहिर और एतवा ने अंग्रेज अधिकारियों और जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किया था। अंग्रेजों ने इसे डकैत का नाम दे रखा था, ताकि जवाहिर और एतवा के पक्ष में सामुहिक ध्रुवीकरण नहीं हो।

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में बिहार के नवादा जिले के पसई निवासी जवाहिर रजवार, कर्णपुर निवासी एतवा रजवार और रजौली के फतेह उर्फ कारू रजवार की उल्लेखनीय भूमिका रही।

ब्रिटिश काल के पुराने दस्तावेजों में इनके विद्रोह के जिक्र मिलते रहे हैं। करीब 164 साल बाद उनके अतीत से लोग अब वाकिफ होने लगे हैं।

राजभर समाज के लोगों ने नवादा के मेसकौर प्रखंड के सीतामढ़ी राजवंशी ठाकुरबाड़ी परिसर में इन गुमनाम नायकों की आदमकद प्रतिमा स्थापित की है। ग्रामीण कहते हैं कि उनकी ये मूर्तियां आनेवाले समय में उनके योगदानों से लोगों को परिचय कराता रहेगा।

नवादा और आसपास के इलाका में होनेवाले विद्रोह की घटनाओं में जवाहिर, एतवा और कारू ने अंग्रेजों को छक्के छुड़ा दिए थे। सरकारी कचहरी, बंगले, जमींदार और उसके कारिंदे की सम्पति विद्रोहियों के निशाने पर था।

विद्रोहियों को जब मौका मिलता था घटना को अंजाम देने से नही चूकते थे। कई जमींदारों ने विद्रोहियों को समर्थन करना शुरू कर दिया था।  रजवार समाज के उपस्थित लोगों को कहना है की नई पीढ़ी इन योद्धाओं से सबक ले इसके लिए प्रतिमा स्थापित की गई है।

27 सितंबर, 1857 को जवाहिर करीब 300 आदमियों के साथ विद्रोह की रणनीति बना रहे थे। तभी अंग्रेज सैनिकों ने गोलियां बरसानी शुरू कर दी थीं। बाद में जवाहिर की मौत हो गई। 1857 का प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन देशव्यापी था। इस आंदोलन में बिहार के नवादा और आसपास का इलाका काफी सक्रिय रहा था। इस इलाके में अंग्रेजों के खिलाफ लंबे समय तक लड़ाई लड़ी गई थी, जिसमें एतवा रजवार, जवाहिर रजवार और कारू रजवार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन इतिहासकारों ने इतिहास के पन्नों मे इन योद्धाओं को जगह नहीं दी। तीनों स्वतंत्रता सेनानी महादलित परिवार से आते है। बुजुर्गो का कहना है कि उस जमाने में इनके ऊपर दो सौ रुपए का इनाम अंग्रेजो द्वारा घोषित किया गया था।

आज सीतामढ़ी में राजवार राजवंशी समाज के लोगों ने ठाकुरबाड़ी में रजवार समाज के इन तीन वीर योद्धाओं का प्रतिमा स्थापित किया । इन तीनों वीर सपूतों की मूर्ति स्थापित करने में बिहार एवं उत्तर प्रदेश से सात लोगों का अथक योगदान रहा। बुधवार को खुले मंच से इन सातों व्यक्तियों को नामों की घोषणा की गई। ये 7 प्रमुख लोगों में बिहार के चार एवं उत्तर प्रदेश के तीन समाजसेवी हैं।

शिवबालक राजवंशी, नीरज राजभर (उत्तर प्रदेश), प्रोफेसर राहुल राजभर (उत्तर प्रदेश), एमबी राजभर पूर्व स्पीकर (उत्तर प्रदेश) भाजपा नेता सुरेंद्र राजवंशी (दिबौर,रजौली)  अर्जुन राम( रजौली विधानसभा के भाजपा से रहे पूर्व प्रत्याशी) एवं बाढो राजवंशी इन सात सहयोगियों की मदद से ही मंदिर का निर्माण एवं वीर योद्धाओं की कथा का उजागर खुला मंच से  प्रारंभ हुआ। मूर्ति निर्माण के सहयोगी रहे सुरेंद्र राजवंशी ने बताया कि हम सभी सातों के अथक प्रयास एवं समाज के सहयोग से 2016 में मूर्ति निर्माण करने का निर्णय लिया गया था।


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