

रिपोर्ट सत्येन्द्र यादव
कुल्टी, कुल्टी रेलवे-स्टेशन के निकट शिव मंदिर में शुक्रवार की शाम को सुहागिन महिलाए पति की लंबी आयु और कुंवारी युवतियां सुंदर वर को प्राप्त करने के लिए हरतालिका का व्रत हर्षोल्लास के साथ मनाई। इस दिन व्रतधारी निराहार और निर्जला में रहती हैं और नया वस्त्र धारण करती हैं।
पंडित मंतोष उपाध्याय ने पंचांग के अनुसार बताया हैं कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। हरतालिका तीज का व्रत विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु और कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की चाह में रखती हैं। माना जाता है कि हरतालिका तीज पर पूरे मनोभाव से पूजा की जाए तो जीवन में सुख-समृद्धि आती है । वैवाहिक जीवन खुशहाल बन जाता है । इस साल उदया तिथि के अनुसार 6 सितंबर के दिन हरतालिका तीज का व्रत रखा गया । हरतालिका तीज की पूजा में व्रत कथा का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि हरतालिका तीज पर व्रत की कथा पढ़ने के बाद ही व्रत संपन्न होता है। यह कथा सुबह और शाम के मिलन के समय सुनी जाती हैं। जिसे प्रदोष काल भी कहां जाता हैं। दक्षिण भारत में (हब्बा) के नाम से पूजा होती हैं।
एक दिन पहले व्रतधारी पूजा की सामाग्री की व्यवस्था करती हैं। जिसमे गिली मिट्टी से देवी देवताओ को आकार दिया जाता हैं। बेलपत्र, शमीपत्र, केले का पत्ता, धतूरा का फल, अकांव का फल, तुलसी, मजंरी, घृत , दूध, जेनाउ, वस्त्र, फल फूल, मां पार्वती की मेंहदी, काजल, चूड़ी, बिछिया, बिंदी, कुमकुम, कंघी, सुहाग पिटारी समेत अन्य समान लगते हैं।
इस व्रत की कथा में गिरिराज की पुत्री गौरा और शिव को प्राप्त करने की बात बताई गई। जिसमे बताया गया हैं कि किस तरह बारह सालों तक निराहार एंव निर्जला रहकर तप किया और गौरा ने भगवान शिव को प्राप्त किया। कथा में लक्ष्मीनारायण पुत्र महर्षि नारद की भी चर्चा की गई। नारद ने इस विवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं।
इस अवसर पर कथा सुनने वाली महिलाओ में प्रमुख रूप से देंमयंती चौबे, ममता चौबे, नीलू शर्मा, ममता चौरशिया, संध्या मडांरी आदि उपस्थित थी।

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