

*गया :* कल से शुरू हो चुके श्राद्ध पक्ष में अब पितृों के निमित्त कार्य किए जाएंगे, वहीं शुभ कार्य वर्जित होंगे। इन 16 दिनों में पितृ यमराज की आज्ञा से सूक्ष्म रूप में पृथ्वी लोक पर रहेंगे, जबकि 25 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ पितृ विसर्जन होगा।श्राद्ध के होते हैं तीन अंग
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की परिसर स्थित श्री सरस्वती मंदिर के आचार्य राकेश शुक्ल ने बताया कि श्राद्ध के तीन अंग पहला पिंडदान, दूसरा तर्पण और तीसरा ब्राह्मण भोजन होता है। इन तीनों क्रियाओं को करने के बाद श्राद्ध की पूर्ति होती है, जिससे पितृ प्रसन्न होते हैं।बताया कि श्राद्ध करते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। श्राद्ध कर्म दूसरों की भूमि पर नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा श्राद्ध में सुपात्र एवं सुयोग्य ब्राह्मण को भोजन में आमंत्रित करना चाहिए। भोजन कराते समय ब्राह्मण से भोजन के बारे में नहीं पूछना चाहिए।
इसके अतिरिक्त तर्पण एवं पिंडदान करते समय पिता कुल के साथ माता कुल की भी तीन पीढ़ियों को जल अंजलि एवं पिंडदान देना चाहिए। ऐसा ना करने से श्राद्ध कर्म की पूर्णता नहीं होती है।

उन्होंने बताया कि श्राद्ध कर्म में मध्याह्न काल के समय पुत्री के पुत्र को भोजन कराने से 1000 ब्राह्मण भोजन का फल प्राप्त होता है।
श्राद्ध कर्म में तर्पण के लिए लोहे के पात्र का निषेध माना गया है। इसकी जगह मिट्टी का पात्र प्रयोग किया जा सकता है। जबकि, धातु के पात्र जैसे- चांदी, तांबा, पीतल आदि बहुत ही पवित्र माने गए हैं।
इसी तरह ब्राह्मण भोजन में जैसे-उड़द, कद्दू, लौकी, मूली, गाजर आदि का निषेध है।
पंडित जगदीश प्रसाद पैन्यूली के अनुसार श्राद्ध पक्ष में तर्पण अवश्य करना चाहिए। साथ ही श्रद्धापूर्वक पितृों का श्राद्ध करना चाहिए। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं।

श्राद्ध में होती है श्रद्धाभाव की आवश्यकता
श्राद्धकर्म नहीं करने से पितृ दोष लगता है। इसके परिणामस्वरूप वंशवृद्धि एवं उन्नति में व्यवधान और कलह उत्पन्न होता है। इसलिए श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए। इसमें थोड़े-बहुत का विचार नहीं करना चाहिए। क्योंकि श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है। इसमें श्रद्धा और भाव की आवश्यकता होती है।
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