

नई दिल्ली : हरियाणा की तुलना में जम्मू कश्मीर में अधिक मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया. चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों इसका पता चलता है. हरियाणा का 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में दो करोड़ से ज्यादा मतदाताओं में से 67.90 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. इनमें से 0.38 प्रतिशत ने वोटिंग मशीन पर इनमें से कोई नहीं (NOTA) विकल्प का प्रयोग किया.
बता दें कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 90 सीटों के लिए तीन चरणों में हुए चुनाव में कुल 63.88 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया. इनमें से 1.48 प्रतिशत ने नोटा का विकल्प चुना. रुझानों के अनुसार, दो प्रतिशत से ज्यादा मतदाताओं ने नोटा का विकल्प नहीं चुना है, जो इस विकल्प को चुनने में मतदाताओं की अनिच्छा को दर्शाता है.

2013 में शुरू किए गए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर NOTA विकल्प का अपना प्रतीक है, जो एक बैलेट पेपर है, जिस पर काले रंग का क्रॉस बना हुआ है. सितंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, चुनाव आयोग ने वोटिंग पैनल पर अंतिम विकल्प के रूप में EVM पर NOTA बटन जोड़ा.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले, जो लोग किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते थे, उनके पास फॉर्म 49-O भरने का विकल्प था. लेकिन चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 49-O के तहत मतदान केंद्र पर फॉर्म भरने से मतदाता की गोपनीयता से समझौता होता था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह निर्देश देने से इनकार कर दिया था कि यदि अधिकांश मतदाता मतदान करते समय NOTA विकल्प का प्रयोग करते हैं, तो वे फिर से चुनाव कराएं.
हाल ही में, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा था कि वर्तमान स्थिति में NOTA का केवल प्रतीकात्मक महत्व है और इसका किसी भी सीट के चुनाव परिणाम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता है. उन्होंने कहा था कि 50 प्रतिशत से ज़्यादा मतदाताओं को एक बार नोटा का विकल्प चुनना होगा ताकि राजनीतिक समुदाय को पता चल सके कि वे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले या अन्य अयोग्य उम्मीदवारों को अपने वोट के लायक नहीं मानते. इसके बाद ही संसद और चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ेगा और उन्हें चुनाव नतीजों पर नोटा को प्रभावी बनाने के लिए कानून बदलने के बारे में सोचना होगा.
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