

उमेश कुमार गिरि: गोविंदपुर धनबाद, झारखंड
मातृभाषा, राष्ट्रभाषा, अस्मिता सम्मान यह हिंदी से स्वाभिमान है हिंदी से हिंदुस्तान है हिंदी को नमन आप सभी भारत वासियों को हिंदी दिवस पर मातृभाषा हिंदी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं

भाषा ही देश की गरिमा होती है
भाषा के द्वारा ही किसी राष्ट्र की संस्कृति की पहचान होती है।
भाषा विचार का संप्रेषण का माध्यम है।

भाषा के माध्यम से ही हम अपने भाव एवं विचारों को एक दूसरे पर प्रकट करते हैं।
भारत विभिन्न संस्कृति समावेश के साथ अनेक भाषा बोलने वाला देश है।
इनमें से हिंदी सर्वाधिक
भारतीयों द्वारा प्रयोग लाई जाने वाली भाषा है।
आजादी के बाद हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अंगीकार किया गया है।
देश प्रेम का सबसे बड़ा आधार भाषा है। हमारे संविधान निर्माताओं ने देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया है।
कोई भी प्रगतिशील राष्ट्र अपनी भाषा के माध्यम से ही राष्ट्र की गणो की उन्नति करने में सक्षम हो सकता है।
भाषा से ही विकास का प्रत्येक चरण प्रत्येक आदमी की आर्थिक समाजिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक व्यापारिक, सभी क्षेत्रों में हमारी राष्ट्र को विकास की मुख्यधारा को गति प्रदान करता है।
यह भी सत्य है कि जिस देश के लोग अपनी मातृभूमि भाषा तथा संस्कृति से लगाव नहीं रखते वह देश लंबे समय तक आजाद नहीं रह सकता।
आधुनिक हिंदी के प्रख्यात परोधा
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने नाटक
” भारत की दुर्दशा पर लिखा था।
” निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
” बिन निज भाषा ज्ञान के, मिट्टी ना दिए को सूल
मैथिलीशरण गुप्त की वह पंक्ति आजादी के संघर्ष के समय गणेश शंकर विद्यार्थी अपने अखबार, प्रताप में मुख्य रूप से लिखते थे।
” जिसको निज भाषा निज देश पर अभिमान है।
वह नर नहीं पशु नीरा मृतक समान है !!
10 मई 1963 का दिन हिंदी के लिए वह अशुभ काल दिवस था
जब राजभाषा अधिनियम संख्या क -19 के अनुसार हिंदी को अनिश्चितकालीन के लिए सलीव पर लटका दिया यह कह कर जब तक एक भी राज्य नहीं चाहेगा तब तक हिंदी केंद्र की यानी भारत की है राज्य भाषा नहीं बनेगी।
केंद्र सरकार ने राजभाषा नीति में 18 बिंदुओं को शामिल किया है। यह दस्तावेज सभी कार्यालयों को भेजा गया है। इन निर्देशों का ठीक से पालन किया जाए तो राजभाषा
यह सम्मान हासिल हो जाएगा।
जिसकी हमारे देश में आवश्यकता है। वर्ष 1968 मे संसद ने राजभाषा संकल्प पारित किया जिसके अनुपालन में केंद्रीय गृह मंत्रालय का राजभाषा विभाग हर साल एक कार्यक्रम जारी करता है।
भारत को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष हो गए पर अंग्रेजी का प्रचार प्रसार आज भी भारत में व्यापक रूप से हो रहा है। बहुत समय तक गुलाम रहने के कारण हम अपनी भाषा संस्कृति साहित्य को भूल गए।
अंग्रेजी के चाटुकारो ने हमारे यह बात बैठा दी बिना अंग्रेजी जाने हम विकास नहीं कर सकते। अगर हम अतीत पर नजर डाले तो स्पष्ट हो जाएगा ज्यादा से ज्यादा विकास हमारे अतीत में हुआ।
परंतु दुर्भाग्य है भारत वासियों के हृदय में हिंदी के प्रति जो महत्व 1947 के पूर्व में था वह अब नहीं है।
जबकि हिंदी की लिपि वैज्ञानिक है, सुबोध है, जैसी बोली जाती है वैसे ही लिखी जाती है। सबसे अहम बात यह है कि हिंदी में राजनीतिक, धार्मिक , सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक सभी प्रकार के संचालन की पूर्ण क्षमता है।
अब आवश्यकता है कि हम अधिक से अधिक हिंदी की उपनयन की दिशा में काम करें।
अब हिंदी को संवैधानिक ताकत देने की आवश्यकता है।
विदेशों में हिंदी भारतीय संस्कृति वैदिक ज्ञान की संवाहिका के रूप मे जानी जाती है।
वैश्वीकरण और बाजार वाद के कारण भारत आर्थिक सत्ता के रूप उमरा है जो हिंदी के लिए शुभ शकुन है।
कई देशों की बागडोर भारतीय लोगो के हाथ मे आई है उन्हें वहां हिंदी के माध्यम से भारतीय को बढ़ावा दे रहे हैं।
विशव हिंदी सम्मेलन केंद्रीय हिंदी संस्थान , गांधी हिंदी विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति जैसी संस्थान हिंदी का प्रचार कर रही है।
हिंदी राष्ट्रभाषा है – राष्ट्रीय भाषा ही रहेगी हिंदी भारतीयों के विकास का सच्चा मार्ग प्रस्तुत कर सकती है।
इसलिए दृढ़ संकल्प के साथ राष्ट्रभाषा को हिंदी के प्रति गौरव बोध जन – गन – मन मे जगाना वर्तमान मे जरूरी है।
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा हिंदी है हम वतन के हिंदुस्तान हमारा
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