

नवरात्रि, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के लिए समर्पित है। इस साल, नवरात्रि 2025 का पहला दिन 24 सितंबर, बुधवार को है। यह दिन देवी शैलपुत्री की पूजा के साथ शुरू होता है, जिन्हें पहाड़ों की पुत्री के रूप में जाना जाता है। इस दिन घर-घर में घटस्थापना या कलश स्थापना की जाती है, जो इन नौ दिनों की पूजा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और विधि

नवरात्रि के पहले दिन, कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06:22 बजे से 07:37 बजे तक है। कलश स्थापना के लिए कुछ जरूरी नियम हैं:

सबसे पहले, स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा का संकल्प लें।
एक मिट्टी का कलश लें और उसमें गंगाजल या साफ पानी भरें।
कलश के अंदर हल्दी, सुपारी, सिक्का, अक्षत (चावल) और दूर्वा डालें।
कलश के मुख पर आम या अशोक के पांच पत्ते रखें और उसके ऊपर एक नारियल रखें।
नारियल पर लाल चुनरी लपेटकर उसे मौली से बांधें।
अब इस कलश को मिट्टी के पात्र में रखें, जिसमें जौ बोए गए हों।
कलश को देवी दुर्गा के सामने स्थापित करें और धूप-दीप जलाकर पूजा शुरू करें।
माता शैलपुत्री की कहानी
नवरात्रि के पहले दिन, देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती है। वह हिमालय की पुत्री हैं, और उन्हें वृषभ पर सवार दिखाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने भगवान शिव और अपनी पुत्री सती (जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप थीं) को आमंत्रित नहीं किया। फिर भी, सती ने वहां जाने का निर्णय लिया। जब वह वहां पहुंचीं, तो दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, जिसे सती सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने स्वयं को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर लिया।
अगले जन्म में, उन्होंने हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिसके कारण वह शैलपुत्री कहलाईं। देवी शैलपुत्री की पूजा से भक्तों को साहस, शक्ति और स्थिरता मिलती है। उनकी पूजा से व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली हर बाधा का सामना करने में सक्षम होता है।
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