

रिपोर्ट :उमेश चौबे
बलियापुर : झारखंड, जिसे “भारत की कोयला राजधानी” के रूप में जाना जाता है, अपनी जमीन के नीचे दबे अपार खनिज संपदा के लिए प्रसिद्ध है। यहां कोयले का विशाल भंडार है, जो राज्य के साथ-साथ पूरे देश की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह खनिज संपदा झारखंड के पदाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को राज्य के विकास के लिए नए अवसर पैदा करने और यहां के लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की असीम क्षमता प्रदान करती है।

सैद्धांतिक रूप से, कोयला उद्योग का विकास यहां बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा कर सकता है, जिससे स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है।लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग है।

झारखंड की वर्तमान स्थिति बेहद विरोधाभासी है, जहां अपार प्राकृतिक संपदा होने के बावजूद लोग गरीबी, बेरोजगारी और संघर्ष से जूझ रहे हैं। आज भी यहां के लोगों को ऐसा महसूस होता है कि उन्हें “अंग्रेजों जैसे शासन” का सामना करना पड़ रहा है, जहां उनके अधिकारों और ज़रूरतों को अनदेखा किया जाता है। स्थानीय लोग अपनी ज़मीन, अपने हक और अधिकारों के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। जिस ज़मीन पर वे सदियों से रह रहे हैं, उसे विकास परियोजनाओं के नाम पर उनसे छीन लिया जाता है, और बदले में उन्हें बहुत कम या कोई मुआवजा नहीं मिलता।
युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बहुत कम हैं। कोयला उद्योग में बड़े पैमाने पर निवेश होने के बावजूद, इसका फायदा स्थानीय लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है।
बाहरी लोग नौकरियों पर कब्जा कर रहे हैं, जिससे झारखंड के युवा निराश और हताश हैं। यह स्थिति न केवल आर्थिक असमानता को बढ़ा रही है, बल्कि सामाजिक तनाव को भी जन्म दे रही है।
ज़मीन के लिए लड़ाई, विस्थापन का दर्द और रोजगार की कमी यहां की रोजमर्रा की सच्चाई बन गई है। झारखंड की कहानी समृद्धि की क्षमता और वर्तमान संघर्ष के बीच एक दुखद अंतर को दर्शाती है। यह एक ऐसा राज्य है जो अमीर है लेकिन जिसके लोग गरीब हैं, जहां संसाधन भरपूर हैं लेकिन अधिकार और न्याय की कमी है।
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