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IIT ISM Dhanbad ने ढूंढ़ी ऐसी 5G तकनीक, जिससे कभी बिजी नहीं आएगा नेटवर्क, कॉल ड्रॉप भी नहीं होग

ByAdmin Office

Oct 9, 2022

 

धनबाद: आइआइटी आइएसएम धनबाद ने तीन ऐसी नई तकनीकें विकसित की हैं, जिससे विज्ञान के क्षेत्र में क्रांति आ सकती है। आइआइटी दिल्ली में 14 और 15 अक्टूबर को लगने वाले रिसर्च एंड डेवलपमेंट फेयर में संस्‍थान अपनी तीनों तकनीक को प्रदर्शित करेगा।

इस फेयर में ड्राेन, 5 जी टेक्नाेलाॅजी, हेल्थकेयर, स्पीच ट्रांसलेशन, साेसाइटल इंपैक्ट, इलेक्ट्रिक व्हीकल से जुड़े प्राेजेक्ट की प्रदर्शनी लगाई जाएगी। इसका उद्देश्य है कि संस्थानाें में रिसर्च और इनाेवेशन के प्रति जागरूकता बढ़े और विश्वविद्यालयाें, संस्थानाें, उद्याेगाें व आइआइटी के बीच सहयाेग का रास्ता ढूंढ़ा जा सके।

आइआइटी आइएसएम ने जिन तीन तकनीकों को इस फेयर में प्रदर्शित करने के लिए तैयार किया है, उनमें से एक है सेल्फ एडवांसिंग गैप एज सपोर्ट। यह तकनीक रूफ फॉल और साइड फॉल जैसे हादसों को रोकेगी। आइआइटी धनबाद की इस तकनीक से ना केवल खदानों में होने वाले हादसे रुकेंगे, बल्कि मजदूरों को सुरक्षा कवच भी मिल सकेगा। खदानों में लगने वाले लकड़ी के पारंपरिक खूंटे की जगह सेल्फ एडवांसिंग गैप एज सपोर्ट सिस्टम के उपयोग से हादसों को रोका जा सकता है।

आइआइटी धनबाद की दूसरी तकनीक 5जी मल्टी फंक्शनल एक्टिव मिमाे काॅग्नीटिव रेडियाे सिस्टम है। इसे प्राे रवि गंगवार और आइआइटी धनबाद के पूर्व व अब आईआईटी कानपुर के प्राध्यापक प्राेफेसर राघवेंद्र चाैधरी की टीम ने तैयार किया है। प्राेफेसर गंगवार ने बताया कि यह मल्टी इनपुट मल्टी आउटपुट एंटीना सिस्टम है। स्पेक्ट्रम मूलत: फ्रिक्वेंसी है और उसकी तय क्षमता हाेती है। एक समय के बाद यूजर बढ़ने पर परेशानी आने लगती है। ऐसे में यह एंटीना तीन काम करेगा। यह स्पेक्ट्रम काे सेंस कर उसकी फ्रिक्वेंसी का बेहतर इस्तेमाल कर पाएगा। कंपनियां अधिक-से-अधिक यूजर काे सर्विस दे पाएंगी और कीमत भी कम रख सकेंगी। दूसरी ओर नेटवर्क व्यस्त नहीं आएगा, काॅल ड्राॅप नहीं हाेगा और एक साथ कई लाेग जुड़ पाएंगे।

इसके अलावा तीसरी तकनीक माइक्रो मशीनिंग है।आइआइटी धनबाद ने एयरोस्पेस और रक्षा तंत्र के लिए रासायनिक सहायक स्पार्क मशीनिंग प्रक्रियाओं का उपयोग कर हाइब्रिड माइक्रो मशीनिंग तकनीक विकसित की है। इसके माध्यम से किसी भी मेटल में छेद किया जा सकता है। प्रोजेक्ट में संस्थान के प्राे आलाेक कुमार दास व प्राे एआर दीक्षित और डीआरडीएल के निलाद्री मंडल और बी हरिप्रसाद ने विकसित किया हैं।


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