

धनबाद : सेल-बीएसएल कोलियरीज में राजभाषा विभाग के तत्वावधान में कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया|
कवि-सम्मेलन के मुख्य अतिथि उपायुक्त, धनबाद, वरुण रंजन (भारतीय प्रशासिक सेवा) थे|
सम्मेलन की अध्यक्षता अनूप कुमार, कार्यपालक निदेशक (कोलियरीज एवं सीसीएसओ) ने किया|

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में रंजन, क्षेत्रीय श्रमायुक्त, धनबाद उपस्थित थे। कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन माननीय उपायुक्त, धनबाद, एवं अन्य गणमान्य अतिथियों के कर-कमलों द्वारा दीप प्रज्वलित कर एवं माँ शारदे के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया।
संजय तिवारी, मुख्य महाप्रबंधक (कार्मिक व प्रशासन) ने कार्यक्रम के दौरान मंच का संचालन किया|

कृष्ण मुरारी तिवारी, राजभाषा अधिकारी ने पूरे कार्यक्रम को संपन्न कराने में संयोजक की भूमिका निभाई|
कवि सम्मेलन को संपन्न कराने में माननीय कार्यपालक निदेशक महोदय श्री अनूप कुमार का निरंतर मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
कवि सम्मेलन में पांच कवि बाहर से बुलाए गए थे : पंडित भूषण त्यागी, ओज, देवरिया, उत्तर प्रदेश. विश्वहार, रायपुर, छत्तीसगढ़
, ब्रह्म दत्त तिवारी उर्फ बादशाह प्रेमी, हास्य, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश मनोज मद्रासी, हास्य, अमरावती, महाराष्ट्र
श्यामल मजूमदार, व्यंगकार, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
कवि सम्मेलन के इस कार्यक्रम में कोलियरीज एवं सीसीएसओ के सभी अधिकारियों के अलावे जिला-प्रशासन एवं अन्य संस्थानों के वरीय अधिकारियों को सपरिवार अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया किया गया था|
सभी कवियों ने एक से बढ़कर एक रचनाएं प्रस्तुत कीं और श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया एवं सभी ने कवि सम्मेलन का भरपूर आनंद उठाया|
जहाँ पंडित भूषण त्यागी ने अपनी कविताओं में चीन को ललकार कर सभी श्रोताओं में ओज का संचार किया वहीं रमेश विश्वहार ने गाँव की गोरी की सुंदरता का बखान अपनी गीतों में कर ऐसी तान छेड़ी की श्रोतागण मंत्रमुग्ध होकर श्रृंगार रस में डूब गए|
हास्य कवि बादशाह प्रेमी ने बफे के प्रीतिभोज को कुकुरभोज बाताकर दर्शकों को खूब हंसाया जबकि मनोज मद्रासी अपने ही रंग-रूप पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जैसे बच्चे को नजर नहीं लगना चाहिए और उसे काजल की छोटी सी बिंदी लगाते हैं वैसे ही आज इस कवि सम्मेलन के कार्यक्रम को किसी की नजर ना लगे इसलिए मुझे बुलाया गया है।
मंच पर कवियों का संचालन व्यंगकार, श्यामल मजूमदार अपनी दमदार व्यंगों और सामाजिक बुराइयों पर कटाक्षों के द्वारा करते रहे और श्रोताओं को समाज की दशा और दिशा पर सोचने को मजबूर कर दिया|
रात की 11:30 बजे तक श्रोतागण दम साधकर बैठे रहे और कवियों को सुनते रहे|
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