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शहीद , भगत सिंह सुखदेव राजगुरु अमर रहे भारत मां के लाल को कोटि-कोटि नमन

ByAdmin Office

Aug 31, 2022

शहीद , भगत सिंह सुखदेव राजगुरु अमर रहे भारत मां के लाल को कोटि-कोटि नमन

भगत सिंह फांसी के 12 घंटे पूर्व की बात हम सब भारतवासी हमारे हृदय को बहुत ही झकोरते है! भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव लाहौर के सेंट्रल जेल मे बंद थे तारीख 23 मार्च 1931 आम दिन से एक अनोखा दिन था इन तीन वीर शहीदों को फांसी मिली थी

मातृभूमि को सर्वस देखकर अपने ही धुन ऐठा था चाहता तो सिर झुका सकता था पर सरफरोशी की तमन्ना वो दिल में लेकर बैठा था भगत सिंह को किताबें पढ़ने का शौक था जेल के कैदियों को अजीब और अनोखा लगा 4:00 का समय था ” वार्डन चरण सिंह ने उनसे आकर कहा की वो अपनी अपनी कटोरियो मे चले जाएं उन्होंने इसका कोई कारण नहीं बताया उन्होंने कहा ऊपर से आदेश है कैदी सोच ही रहे थे कि माजरा क्या है!
जेल का नाई वर्कर हर कमरों से फुसफुसाकर निकला आज रात
भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
को फांसी दी जाने वाली है अब सब कैदी चुप हो गए थे उनकी निगाहें सामने वाली कोटरी के सामने वाले रास्ते पर लगी हुई थी भगत और उनके साथी फांसी पर लटकाए जाने के लिए उसी रास्ते से गुजरने वाले थे एक बार जब भगत से पहले उस रास्ते से गुजर रहे थे तब पंजाब कांग्रेस के नेता भीमसेन सुंर्जर ने ऊंची आवाज से पूछा था आप और आपके साथियों ने बचाव क्यों नहीं किया!

भगत सिंह का जवाब था
” इनकालाबियो को मरना ही होता है!
क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभिमान मजबूत होता है अदालत मे अपील से नहीं!
वार्डन चरण सिंह भगत सिंह के खेरवा थे भगत सिंह को बहुत पसंद करते थे जो उनसे बन पड़ता था वे करते थे उनके द्वारा की द्वारिका दास लाइब्रेरी से किताबें निकालकर जेल के अंदर आपाते भगत सिंह का किताबें पढ़ने का बहुत शौक था! भगत से कठिन जिंदगी का आदि हो चुके थे उनका कोटरी नंबर 14 काफी छोटा था और उस पर घास आदि थे कोठरी में बहुत कम जगह थी!
भगत सिंह शेर की तरह कमरे मे चक्कर काट रहे थे!
भगत सिंह फांसी देने के 2 घंटे पहले उनके वकील प्राणनाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे थे मेहता ने बाद में लिखा था भगत सिंह छोटे से कमरे मे बंद शेर की तरह चक्कर काट रहे थे!
उन्होंने मेहता का स्वागत किया आप मेरी किताब रवोलिन मेशरेरी लाये कि नहीं किताब वह वही पढ़ने लगे!
मेहता ने कहा देश के लिए कोई संदेश देना चाहोगे किताब से बिना मुंह हटाऐ बोले दो संदेश

साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और
इंकलाब जिंदाबाद

मेहता से कहा पंडित नेहरू और सुभाष चंद्र बोस को धन्यवाद कहना जिसने मेरे केस में दिलचस्पी ली थी

कभी वो दिन भी आएगा
कि जब आजाद हम होंगे
ये अपनी ही जमी होगी
ये अपना आसमा होगा

भगत सिंह ने इंकलाब जिंदाबाद
का नारा जोर-जोर से लगाया

भगत सिंह , राजगुरु, और सुखदेव भारत के वे सच्चे वीर सपूत थे, जिन्होंने अपनी देशभक्ति और देश प्रेम को अपने प्राणों से भी अधिक महत्व दिया और मातृभूमि के लिए प्राण निछावर कर गए देश के प्रति जो इनका सम्मान था हिंदुस्तानी होने का गौरव अनुभव कराता है!
उन अमर क्रांतिकारियों के बारे मे आम मनुष्य की वैचारिक टिप्पणी का कोई अर्थ नहीं है!
उनके उज्जवल चरित्र को बस याद किया जा सकता है की ऐसे मानव भी इस दुनिया मे हुए जिनके आचरण किवदंती है भगत सिंह ने अपनी संक्षिप्त जीवन मे वैचारिक क्रांति की जो मशाल जलाई पुण्य के बाद अब किसी के लिए संभव नहीं होगी

आदमी को मारा जा सकता है उसके विचार को नहीं बड़े साम्राज्यो का पतन हो जाता है लेकिन विचार हमेशा जीवित रहते हैं और बहरे लोगो को सुनाने के लिए ऊंची आवाज जरूरी है बम फेंके जाने के बाद भगत सिंह द्वारा फेंके गए पर्चे मे या लिखा था
निर्धारित योजना के अनुसार भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेंबली मे खाली स्थान वाली एक बम फेंका था इसके बाद स्वयं गिरफ्तारी देकर अपना संदेश दुनिया के सामने रखा

यह मुकदमा भारत स्वतंत्रता के इतिहास में लाहौर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है करीब 2 साल जेल प्रवास के दौरान भी भगत सिंह क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े रहे और लेखन एवं अध्ययन भी जारी रखा फांसी पर जाने से पहले तब वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था

और 23 मार्च 1931 को शाम ,7.23 पर भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरु तीन महान क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई
देश पर बलिदान देने वाले अमर क्रांतिकारी को विनम्र श्रद्धांजलि

उमेश कुमार गिरि:
गोविंदपुर धनबाद झारखंड


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