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शख्सियत : दक्षिण के दुर्दांत तस्कर वीरप्पन की बेटी को बीजेपी ने बनाया तमिलनाडु के युवा मोर्चा का उपाध्यक्ष

ByAdmin Office

Jun 8, 2024

 

कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन का नाम कौन नहीं जानता।किन्तु क्या आपको ज्ञात है कि जिस व्यक्ति के आतंक से प्रभावित प्रदेशों की सरकारें आतंकित रहतीं थीं, उसके अंत के बाद उसकी अबोध संतान कुडुगला विद्या वीरप्पन की सुध लेने वाला कोई न था,,न तमिलनाडु सरकार,न वीरप्पन का समाज और न ही कोई सगा सम्बन्धी।

सबने इस असहाय बालिका को जंगल में भटकने के लिए यूँ ही छोड़ दिया था।
जब संघ को इसकी जानकारी मिली तो तो उन्होंने इसे गोद लिया और संघ की शाखा “वनवासी कल्याण आश्रम” ने इस बालिका को संरक्षण देते इसके पठन पाठन की व्यवस्था की।

आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि आज वह बालिका शिक्षित सुसंस्कृत होकर वकालत की डिग्री रखती है और साथ ही तमिलनाडु भाजपा पिछड़ा मोर्चा की वह उपाध्यक्ष भी है।

*विद्या को अपनी नियुक्ति का पता फेसबुक के जरिए चला*

जब राज्य बीजेपी के नेतृत्व ने उसे सोशल मीडिया पर साझा किया। अब विद्या और उसके पिता की चर्चा है। विद्या ने अपने पिता के बारे में बताया कि उसने सिर्फ एक बार ही उन्हें देखा है।
29 साल की विद्या लॉ ग्रैजुएट है और कृष्णागिरि में बच्चों के लिए स्कूल चलाती हैं। तमिलनाडु में सत्ता के लिए संघर्ष कर रही बीजेपी के लिए वीरप्पन नाम एक आकर्षक है
1990-2000 के दशक बीच दक्षिण भारत में खासकर पश्चिमी घाट के इलाके वाले दो राज्यों में तथाकथित चंदन तस्कर का आतंक बोलता था।

उस पर पुलिस और वन विभाग के अधिकारियों समेत करीब 150 लोगों की हत्या के आरोप थे। इसके अलावा 100 हाथियों की तस्करी के भी आरोप थे। साल 2004 में पुलिस मुठभेड़ में वह मारा गया था लेकिन एक बार फिर से तमिलनाडु में वीरप्पन नाम सुनने को मिल रहा है।

*इसकी वजह है केंद्र की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी।*

बीजेपी ने वीरप्पन की बेटी विद्या वीरप्पन को युवा मोर्चा का तमिलनाडु का नया उपाधायक्ष बनाया है। 29 साल की विद्या लॉ ग्रैजुएट है और कृष्णागिरि में बच्चों के लिए स्कूल चलाती हैं। तमिलनाडु में सत्ता के लिए संघर्ष कर रही बीजेपी के लिए वीरप्पन नाम एक आकर्षक है। लेकिन विद्या के लिए, यह “सामाजिक सेवा” है। विद्या कहती हैं, “मैं किसी भी विशेष समुदाय से संबंधित नहीं हूं, मैं मानवता में विश्वास रखती हूं।”

विद्या ने कहा, “मैंने उसे केवल एक बार स्कूल की छुट्टी के दौरान देखा था, जब मैं अपने दादा के गाँव गोपीनाथम, कर्नाटक के हनूर के पास थी। पास में एक जंगल था, मैं मुश्किल से छह या सात साल की थी। वो आए जहां हम खेल रहे थे, मुझसे बात करने में कुछ मिनट बिताए और चले गए। मुझे याद है कि उन्होंने मुझसे पूछा था कि अच्छा करो, एक डॉक्टर बनो और लोगों की सेवा करो।”

विद्या ने कहा, “जब तक मैंने दुनिया को जानना शुरू ही किया था, तब तक वह अपना जीवन व्यतीत कर चुके थे… मेरा मानना है कि यह उनके चारों ओर की स्थितियां थी जिसकी वजह से उन्होंने एक समस्याग्रस्त रास्ता चुना। लेकिन उनके बारे में सुनी गई कुछ कहानियों ने मुझे समाज सेवा करने के लिए प्रेरित किया।”
साल 2000 में वीरप्पन तब सुर्खियों में था, जब उसने कन्नड़ फिल्म अभिनेता राजकुमार का अपहरण किया था और हफ्ते भर बाद रिलीज किया था।

चार साल बाद एक बार फिर अखबार के पन्नों पर वीरप्पन ने जगह बनाई थी, जब तमिलनाडु पुलिस के स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने उसे ढेर कर दिया था। एसटीएफ की अगुवाई करने वाले के विजय कुमार को तब केंद्रीय गृह मंत्रालय में सुरक्षा सलाहकार बनाया गया था।


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