

इंटरनेट पर बढ़ते निर्भरता की वजह से साइबर बुलीइंग के मामले में बढोतरी हुई है. इसी बीच एक चौकाने वाला आकड़ा भी सामने आ गया है. एनसीईआरटी के मनोदर्पण टेली काउंसलिंग की मानें तो साइबर बुलिंग के चलते लगभग 30 फीसदी बच्चे मानसिक तनाव में हैं. इस तनाव के कई वजहें हैं, जिनमें से फोन का इस्तेमाल मुख्य वजह बताया गया है.
हालांकि, एनसीईआरटी ने ऐसे बच्चों को चिह्नित करने और इन्हें सुधारने की कवायद शुरू कर दी है. पहले चरण में इसके लिए देशभर में मास्टर ट्रेनर तैयार किए जा रहे हैं. इसका मुख्य कार्य ऐसे बच्चों की पहचान करना होगा, जो साइबर बुलिंग के शिकार हैं. इन मास्टर ट्रेनर को बेंगलुरु स्थित निमहांस की मदद से विशेषण ट्रेनिंग दिया जाएगा.

साइबर बुलिंग के सिकार बच्चों को चेहरे के हाव-भाव, दिनचर्या और शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर पहचाना जाएगा. बिहार से सैनिक स्कूल, राजगीर के शिक्षक प्रमोद कुमार को मास्टर ट्रेनर बनाया गया है. उन्होंने बताया कि एनसीईआरटी के मनोदर्पण टेली काउंसिलिंग के अनुसार कोरोना काल के बाद स्कूली बच्चों में साइबर बुलिंग के केस काफी बढ़े हैं. इसमें उनका आर्थिक नुकसान होता है. बच्चे मानसिक तनाव में होते हैं. इसका असर उनकी पढ़ाई पर हो रहा है.

बता दें कि इंटरनेट के माध्यम से गलत फोटो, गलत भाषा या फेक न्यूज आदि का इस्तेमाल करते हुए किसी भी व्यक्ति को डराना, धमकाना या उसे गलत दिशा में भटकाना आदि साइबर बुलिंग में आता है. इसमें किसी को धमकी देना, अफवाह फैलाना, अश्लील भाषा, फोटो का गलत इस्तेमाल कर दूसरों को परेशान किया जाता है.
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