

सावन का महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक करने वालों के बारे में तो आपने सुना होगा। आपने मध्य प्रदेश के मंदसौर में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के बारे में भी सुना होगा, जहां पास ही बहने वाली शिवना नदी का जलस्तर सावन के महीने में बढ़ जाने पर नदी का पानी मंदिर में प्रवेश कर जाता है। लेकिन…
क्या आपने महादेव के किसी ऐसे मंदिर के बारे में सुना है जहां भगवान शिव दिन में दो बार समुद्र में जल समाधी ले लेते हैं। जी हां, गुजरात में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर भी है जहां अपने भक्तों को दर्शन देने के बाद भगवान शिव समुद्र के अथाह जल में छिप जाते हैं। वह भी कभी-कभार नहीं बल्कि हर दिन दो बार।

*आइए आपको गुजरात के स्तंभेश्वर महादेव मंदिर के बारे में बताते हैं :*

*कहां है स्तंभेश्वर महादेव का मंदिर?*
स्तंभेश्वर महादेव का मंदिर गुजरात की राजधानी गांधीनगर से 175 किमी दूर और वडोदरा से 72 किमी दूर कावी कंबोई गांव में स्थित है। दोनों जगहों से ही गाड़ी से जाने पर कावी कंबोई गांव पहुंचने में आपको 4 से 4.30 घंटे का समय लग सकता है। बताया जाता है कि यह मंदिर 150 साल से भी ज्यादा पुराना है। इस मंदिर का वर्णन शिवपुराण में भी मिलता है। अरब सागर और खंबात की खाड़ी से घिरे इस मंदिर में भगवान शिव की जल समाधी की लीला अगर देखनी है तो आपको अहले सुबह यहां पहुंचना और देर शाम तक यहां रुकना पड़ेगा।
*क्यों समुद्र में जल समाधी लेते हैं महादेव?*
भारत में समुद्र के किनारे कई तीर्थ स्थान व मंदिर हैं लेकिन उनमें से कोई भी पूरी तरह से समुद्र के अंदर नहीं छिप जाता है। जबकि स्तंभेश्वर महादेव मंदिर में सुबह और शाम के समय भगवान शिव समुद्र के जल में छिप जाते हैं। दरअसल, इसका कारण समुद्र के ज्वार और भाटा से संबंधित है। सुबह और देर शाम को जब समुद्र में ज्वार आता है तो यह मंदिर स्तंभेश्वर महादेव के शिवलिंग समेत पूरी तरह से जल समाधी ले लेता है।
लेकिन जब समुद्र का जलस्तर धीरे-धीरे कम होने लगता है यानी भाटा आता है तो भगवान शिव फिर से अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। इसी वजह से यहां आने वाले भक्त मानते हैं कि समुद्र देव भगवान शिव का दिन में दो बार जलाभिषेक करते हैं।
*क्या है स्तंभेश्वर महादेव मंदिर की कहानी?*
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव का एक भक्त, ताड़कासुर ने उनकी तपस्या की। जब महादेव प्रसन्न हुए तो ताड़कासुर ने उनसे वरदान मांगा कि उसका वध केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही हो। वह भी तब जब उनके पुत्र की आयु मात्र 6 दिन हो। भगवान शिव ने ताड़कासुर को यह वरदान दे दिया। वरदान मिलते ही ताड़कासुर ने सभी को परेशान करना शुरू कर दिया।
जब ऋषि-मुनियों और देवताओं ने भगवान शिव से उसका वध करने की प्रार्थना की तो श्वेत पर्वत के कुंड से 6 दिन के कुमार कार्तिकेय का जन्म हुआ। उन्होंने ताड़कासुर का वध तो कर दिया लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि वह शिवभक्त था, तो उन्हें इस बात का बहुत पश्चाताप भी हुआ। तब भगवान विष्णु ने उनसे उस स्थान पर ही एक शिवलिंग की स्थापना करने के लिए कहा जहां उन्होंने असुर का वध किया था।
*कैसे पहुंचे काबी कंबोई गांव?*
अगर आप स्तंभेश्वर महादेव के मंदिर में सड़क मार्ग से जाना चाहते हैं तो काबी कंबोई गांव वडोदरा, भरूच और भावनगर जैसे शहरों से सड़क मार्ग से काफी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर से वडोदरा की दूरी केवल 72 किमी की है, जहां पहुंचने में आपको डेढ़ से 2 घंटों का समय लग सकता है। ट्रेन से आने पर स्तंभेश्वर महादेव मंदिर से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भी वडोदरा ही होगा। वडोदरा से मंदिर तक के लिए आपको टैक्सी आराम से मिल जाएगी।
There is no ads to display, Please add some





Post Disclaimer
स्पष्टीकरण : यह अंतर्कथा पोर्टल की ऑटोमेटेड न्यूज़ फीड है और इसे अंतर्कथा डॉट कॉम की टीम ने सम्पादित नहीं किया है
Disclaimer :- This is an automated news feed of Antarkatha News Portal. It has not been edited by the Team of Antarkatha.com