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संत कबीरनगर में जन्मे, अयोध्या में बीता जीवन सत्येंद्र दास का,बाबरी विंध्वस के वक्त रामलला को गोद में लेकर भागे थे, टीचर के बाद पुजारी बने

Byadmin

Feb 12, 2025

28 साल तक टेंट में की थी रामलला की पूजा, 100 रुपये थी तनख्वाह

बिरेंद्र गिरी, पत्रकार

अयोध्या :-जन्म संतकबीरनगर जिले में 20 मई, 1945 में हुआ था। यह जिला अयोध्या से 98 किमी दूर है। वे बचपन से ही भक्ति भाव में रहते थे। उनके पिता अक्सर अयोध्या जाया करते थे, वह भी अपने पिता के साथ अयोध्या घूमने जाते थे।

अयोध्या में उनके पिता अभिराम दास जी के आश्रम में आते थे। सत्येंद्र दास भी अभिराम जी के आश्रम में आने लगे थे। अभिराम दास वही थे, जिन्होंने राम जन्मभूमि में 22-23 दिसंबर 1949 में गर्भगृह में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और सीता जी की मूर्तियों के प्रकट होने का दावा किया था। इन्हीं मूर्तियों के आधार पर आगे की लड़ाई लड़ी गई।

मूर्तियों के प्रकट होने के दावे और अभिराम दास जी की रामलला के प्रति सेवा देखकर सत्येंद्र दास बहुत प्रभावित हुए। उन्हीं के आश्रम में रहने के लिए उन्होंने संन्यास लेने का फैसला किया। सत्येंद्र दास ने 1958 में घर छोड़ दिया। उनके परिवार में दो भाई और एक बहन थीं। बहन का निधन हो चुका है।सत्येंद्र दास ने जब अपने पिता को संन्यास लेने का फैसला सुनाया तो उनके पिता ने भी कोई आश्चर्य जाहिर नहीं किया। साथ ही उन्होंने आशीर्वाद दिया। कहा- मेरा एक बेटा घर संभालेगा और दूसरा रामलला की सेवा करेगा।

राममंदिर के प्राण प्रतिष्ठा पर एक इंटरव्यू में तब सत्येंद्र दास ने कहा था कि 6 दिसंबर, 1992 को जब बाबरी विध्वंस हुआ तो मैं वहीं था। मंच पर लाउडस्पीकर लगा था।नेताओं ने कहा- पुजारी जी रामलला को भोग लगा दें और पर्दा बंद कर दें। मैंने भोग लगाकर पर्दा लगा दिया। उसके बाद नारे लगने लगे। सारे नवयुवक उत्साहित थे। वे बैरिकेडिंग तोड़ कर विवादित ढांचे पर पहुंच गए और तोड़ना शुरू कर दिया।

मैं बीच वाले बड़े गुंबद के नीचे रामलला की रखवाली कर रहा था। गुस्साए कारसेवक इस गुंबद पर भी चढ़ गए, उसे तोड़ने लगे। गुंबद के बीचो बीच बड़ा सुराख हो गया। ऊपर से रामलला के आसन पर मिट्टी और पत्थर गिरने लगे।

उस वक्त मंदिर में मेरे साथ पुजारी संतोष और चंद्र भूषण जी थे। हमने तय किया कि रामलला को यहां से लेकर निकलना पड़ेगा। मैं रामलला, भरत और शत्रुघ्न भगवान की मूर्तियां को गोद में लेकर दौड़ पड़ा। उसके बाद रामलला टेंट में गए और टेंट से अब एक विशाल मंदिर में विराजमान हैं।

28 साल तक टेंट में की थी रामलला की पूजा, 100 रुपये थी तनख्वाह

आचार्य सत्येंद्र दास ने राम मंदिर में बतौर मुख्य पुजारी करीब 34 साल तक सेवा की.सत्येंद्र दास राम मंदिर ट्रस्ट के भी प्रमुख सदस्य थे. सत्येंद्र दास बाबरी विध्वंस से लेकर रामलला के भव्य मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के साक्षी रहे हैं. वह पिछले 34 साल से राम जन्मभूमि परिसर में रामलला की सेवा कर रहे थे. उन्होंने टेंट में रहे रामलला की 28 साल तक पूजा-अर्चना की थी. इसके बाद करीब चार साल तक अस्थायी मंदिर में रामलला की सेवा मुख्य पुजारी के तौर पर की थी. इसके बाद जब राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई तब भी वो रामलला की सेवा मुख्य पुजारी के तौर पर कर रहे थे.


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