

सरायकेला/चांडिल: झारखंड सरकार द्वारा विस्थापन और पुनर्वास से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए ‘विस्थापित एवं पुनर्वास आयोग’ के गठन की घोषणा के बाद, सरायकेला-खरसावां जिले में विस्थापितों का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। चांडिल डैम से विस्थापित हुए लोगों के संगठनों ने सरकार के इस कदम का स्वागत तो किया है, लेकिन साथ ही चेतावनी भी दी है कि अगर आयोग में वास्तविक विस्थापितों को शामिल नहीं किया गया, तो यह सिर्फ एक “छलावा” साबित होगा।
‘वास्तविक विस्थापितों को किया जा रहा दरकिनार’

चांडिल डैम विस्थापित अधिकार मंच फाउंडेशन के अध्यक्ष राकेश रंजन महतो ने आरोप लगाया कि वास्तविक विस्थापितों को दरकिनार कर बनाया गया आयोग, उनके जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा होगा। उन्होंने कहा कि अब विस्थापित समुदाय और धोखा बर्दाश्त नहीं करेगा।

विस्थापित संघर्ष समिति के सचिव विवेक सिंह बाबू ने एक संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि पहले भी पुनर्वास नीतियां खोखली साबित हुई हैं, जहां विस्थापितों के अधिकारों की अनदेखी कर दलालों और भ्रष्टाचारियों को फायदा पहुंचाया गया। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इतिहास दोहराया गया तो विस्थापित चुप नहीं बैठेंगे।
‘आयोग में केवल रैयती जमीन दाताओं को ही शामिल किया जाए’
विस्थापित संगठनों ने सरकार से साफ तौर पर मांग की है कि आयोग में केवल रैयती जमीन दाता विस्थापितों को ही शामिल किया जाए। उन्होंने कहा कि अगर उनकी यह मांग पूरी नहीं होती है, तो वे राज्यव्यापी उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।
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