

केंदुआ। पुटकी अंचल अंतर्गत केंदुआ,करकेंद,कुस्तौर,गोधर,पुटकी, भागाबान्ध,मुनीडीह आदि कोल बेयरिंग क्षेत्रों में कुकुरमुत्ते की तरह निजी विद्यालय फैले हुए है जहां छात्र-छात्राओं के साथ अभिभावकों का जमकर चौतरफा शोषण हो रहा है।इन निजी विद्यालयों में सरकार के गाईड लाइन कोई पालन नही हो रहा है। बताया जाता है कि निम्नलिखित क्षेत्र में संचालित निजी विद्यालयों में छात्र छात्राएं को पढाई करने में उन्हें प्रत्येक वर्ष सभी कलास में (एनुअल) फीस के नाम पर वर्गोनोत्ति कराना पड़ता है। किताब,जूता, और स्कूल ड्रेस आदि शिक्षकों के निर्देश पर मन मुताबिक दुकान से खरीदे जाते है, जहां से उन्हें निर्धारित कमीशन प्राप्त होती है। यहां तक कि हर वर्ष कलास के अनुसार किताबे भी बदल दी जाती है, एवं किसी निर्धारित किताब दुकान पर ही उस विद्यालय की पुस्तकें मिलती हैं वो भी अंकित मूल्य जो किताब में छापी गयी हों।यहाँ एक बात और भी है जिसे जानना बहुत ज्यादा जरूरी होता है कि, पुस्तक दुकानदार विद्यालय से पहले ही सम्पर्क और निर्धारित कमीशन तय कर विद्यालय प्रबंधन को मोटी रकम दी जा चुकी होती है जिससे पुस्तक दुकानदार अभिभावकों से मनमानी रुपयों की उगाही करने में सफल हो जाता है। जहाँ राज्य सरकार में शिक्षा विभाग की ओर से सिलेबस को लेकर विद्यालयों के पुस्तकों के प्रकाशन को लेकर इन दिनों काफी चर्चा का माहौल बना है यदि इसे धरातल पर अविलंब लागू कर दिया जाता है तो छात्रों के भविष्य को बेहतर आयाम मिल सकेगा क्योंकि वे किसी भी विद्यालय में पढ़े उन्हें अलग-अलग किताबों का सामना नहीं करना पड़ेगा और साथ ही अभिभावकों को भी किसी भी पुस्तक दुकान से किसी भी क्लास की किताब लेने में कोई परेशानी नहीं होगी। साथ ही विद्यालय व किताब दुकान की आपस में किसी प्रकार की सेटिंग ना होने से छात्रों के अभिभावकों को राहत मिलेगी। वहीं सरकारी शिक्षण संस्थानों में 5 वर्षो में किताबें बदले जाते है। स्कूल फी में भी कलास के मुताबिक बढ़ोतरी की जाती है, जैसे- परीक्षा शुल्क, साइंस-लैब शुल्क, डायरी शुल्क एवं अतिरिक्त शुल्क। सोचने वाली बात तो यह है कि, केजी में पढ़ने वाले बच्चों को कौन सा साइंस-लैब होता है लेकिन फिर भी शुल्क तो देना ही पड़ता है। इसके अलावे बोर्ड की परीक्षा में छात्र-छात्राओं को किसी दूसरे सरकारी स्कूल से पंजीकृत कराया जाता है 9वीं ,10वीं में दो वर्षों तक दोनों स्कूलों में उनकी उपस्थिति दर्ज होती है।और स्कूल फीस भी दो तरह से लिए जाते है। किसी एक छात्र-छात्रा का दो स्कूल में नामांकन और उपस्थिति दर्ज होना अवैध और गहन छानबीन का विषय है। इस कदर निजी विद्यालयों का आड़ में छात्र-छात्राओं के साथ अभिभावकों का जमकर चौतरफा शोषण हो रहा है अभिभावकों द्वारा किसी प्रकार का विरोध जताने पर उनके बच्चे वैसे छात्र छात्रा को वर्ष के बीच मे ही विद्यालय से बिना किसी प्रमाण पत्र के निकाल दिए जाते है।जिससे उन्हें दूसरे स्कूल में नामांकन के लिए भी दर दर ठोकर खाना पड़ता है।जो जिला प्रशासन एवं राज्य सरकार के लिए चुनौती है।
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