

नवरात्रि का दूसरा दिन, यानी 25 सितंबर, गुरुवार, मां दुर्गा के दूसरे रूप मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है। ‘ब्रह्म’ का अर्थ है तपस्या और ‘चारिणी’ का अर्थ है आचरण करने वाली, इसलिए इन्हें तपस्या का आचरण करने वाली देवी माना जाता है। इस दिन भक्त कठोर तपस्या और साधना का प्रतीक मानी जाने वाली देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं।
*पूजा विधि और विशेषता*

नवरात्रि के दूसरे दिन, देवी ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा की जाती है।

पूजा: इस दिन ब्रह्मचारिणी माता को गुड़हल और कमल के फूल अर्पित किए जाते हैं। उन्हें मिश्री, पंचामृत और फल का भोग लगाया जाता है।
मंत्र: देवी को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप करें: ”
दधानाकरपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।देवीप्रसीदतुमयिब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।
”
विशेषता: मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से व्यक्ति में संयम, धैर्य और तपस्या की भावना जागृत होती है। वह अपने भक्तों को जीवन के कठिन संघर्षों में सफलता और विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद देती हैं।
*मां ब्रह्मचारिणी की कहानी*
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी पूर्व जन्म में हिमालय की पुत्री थीं। उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। इस तपस्या में उन्होंने वर्षों तक निराहार रहकर शिव का ध्यान किया। उनकी कठोर तपस्या से देवता भी हैरान थे। उनकी इस अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर, ब्रह्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे भगवान शिव की पत्नी बनेंगी।
उनकी तपस्या इतनी महान थी कि उन्हें “तपस्चारिणी” भी कहा जाता है। वह भक्तों को यह संदेश देती हैं कि सच्ची लगन और दृढ़ निश्चय से हर लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। उनकी पूजा करने से व्यक्ति के मन में एकाग्रता और धैर्य का विकास होता है, जिससे वह अपने जीवन में आने वाली हर चुनौती का सामना कर सकता है।
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