

शारदीय नवरात्रि अपने अंतिम चरण में है। यह पावन पर्व महानवमी के दिन कन्या पूजन के साथ संपन्न होगा, जिसके अगले दिन पूरे देश में विजयदशमी मनाई जाएगी। इस वर्ष महानवमी 1 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथियों पर कन्या पूजन का विशेष महत्व है, जिससे मां दुर्गा और सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।
महानवमी और कन्या पूजन का महत्व

महानवमी के दिन मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इनकी पूजा करने से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।

कन्या पूजन का महत्व: नवमी तिथि पर घरों में 9 कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर पूजा जाता है। इससे घर-परिवार में समृद्धि, सुख-शांति और सौभाग्य का वास होता है। कन्या पूजन के साथ एक बालक (लंगूर/भैरव) को भी भोजन कराना शुभ माना जाता है।
पूजा विधि और कन्या पूजन का शुभ समय
महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से व्यक्ति को यश, बल और धन की प्राप्ति होती है।
पूजा विधि: इस दिन मां सिद्धिदात्री को बैंगनी या जामुनी रंग के वस्त्र, नारियल, कमल का फूल और विभिन्न प्रकार के फल अर्पित किए जाते हैं। मां को तिल का भोग लगाना शुभ माना जाता है। हवन के साथ मां की आरती करें।
कन्या पूजन का समय: नवमी के दिन कन्या पूजन के लिए सुबह 09:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक का समय अत्यंत शुभ माना जाता है।
कन्याओं के पैर धोकर उन्हें आसन पर बैठाएं।
उन्हें रोली, अक्षत लगाकर चुनरी ओढ़ाएं।
उन्हें हलवा, पूड़ी और चने का भोजन कराएं।
भोजन के बाद उनका आशीर्वाद लें और दक्षिणा/उपहार भेंट करें।
मां सिद्धिदात्री की कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में भगवान शिव ने इन्हीं देवी की आराधना से सभी सिद्धियों को प्राप्त किया था। इसी कारण भगवान शिव का आधा शरीर देवी का होने के कारण उन्हें अर्धनारीश्वर भी कहा गया। मां सिद्धिदात्री सभी देवी-देवताओं द्वारा पूजित हैं और उन्हें अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व जैसी आठ सिद्धियां प्रदान करने वाली माना जाता है।
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