

नवरात्रि का सातवां दिन, यानी रविवार, 28 सितंबर 2025, मां दुर्गा के सप्तम स्वरूप मां कालरात्रि को समर्पित है। महा सप्तमी का यह दिन विशेष महत्व रखता है। मां कालरात्रि ने दुष्ट असुरों का वध करने और बुराई को खत्म करने के लिए यह भयंकर रूप धारण किया था। ऐसी मान्यता है कि इनकी पूजा-अर्चना करने से भक्तों को भूत-प्रेत और सभी बुरी शक्तियों से छुटकारा मिलता है।
मां कालरात्रि की पूजा विधि, मंत्र और खास भोग

पूजा विधि: देवी पार्वती के कालरात्रि रूप की पूजा करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन काले या नीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है, जो अंधकार पर विजय का प्रतीक है।

एक चौकी पर मां कालरात्रि की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
माता को लाल पुष्प (गुड़हल) अर्पित करें।
पूजा में धूप, दीप, रोली और अक्षत चढ़ाएं।
मां कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीज़ों का भोग लगाएं। मान्यता है कि गुड़ का भोग लगाने से मां अत्यंत प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
मंत्र: मां कालरात्रि के बीज मंत्र ”
ॐऐंह्रींक्लींचामुण्डायैविच्चैनमः
” या ”
यादेवीसर्वभूतेषुमाँकालरात्रिरूपेणसंस्थिता।नमस्तस्यैनमस्तस्यैनमस्तस्यैनमोनमः।
” का जाप करने से व्यक्ति निर्भय होता है।
मां कालरात्रि की कहानी और महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब शुंभ और निशुंभ नामक राक्षसों ने देवताओं पर हमला कर दिया और आतंक मचाना शुरू कर दिया, तब देवी दुर्गा ने राक्षसों का संहार करने के लिए मां कालरात्रि का रूप लिया। उनके शरीर का रंग गहरे काले के समान है, उनके बाल बिखरे हुए हैं और उनकी चार भुजाएं हैं। उनके गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है।
मां कालरात्रि की उपासना करने से जीवन के सभी दुख, रोग और भय दूर होते हैं। वह अपने भक्तों को हर तरह के भय से मुक्ति दिलाती हैं और काल (समय) पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद देती हैं। उनकी पूजा से व्यक्ति को दृढ़ता, शक्ति और साहसी बनने की प्रेरणा मिलती है।
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