

लखीसराय: लखीसराय के इटौन पंचायत में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत चल रहे कार्यों में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है, जिससे ग्राम पंचायत स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार और जनता के साथ हो रहे धोखे की आशंका प्रबल हो गई है। मननपुर भलुई जाने वाली सड़क के नजदीक पैन की सफाई के नाम पर चल रहे कार्य पर कई गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं, जिनसे मनरेगा की मूल भावना पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है।
कार्यस्थल पर काम करने वाले मजदूर नाबालिग पाए गए हैं, जिनकी उम्र मजदूरी करने की नहीं है। ये बाल मजदूर पेट की मजबूरी में काम करते दिखे। उनसे मजदूरी के बारे में पूछने पर हर कोई कतरा रहा था, हालांकि दबी जुबान में यह जरूर बताया गया कि उन्हें मजदूरी हर शाम नकद मिल जाती है, लेकिन कितनी मिलती है, यह बताने से इनकार कर दिया गया।

यह स्थिति इस बात पर गंभीर सवाल खड़े करती है कि क्या इन मजदूरों के पास जॉब कार्ड हैं? यदि जॉब कार्ड हैं, तो उन्हें दैनिक नकद भुगतान क्यों किया जा रहा है? और यदि जॉब कार्ड नहीं हैं, तो फिर किसके जॉब कार्ड दिखाकर इन कार्यों के लिए राशि निकाली जा रही है?

सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इस काम में लगाए गए नाबालिगों के भविष्य का क्या होगा और उनके अधिकारों का हनन क्यों किया जा रहा है?
मामले में एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। स्वच्छता कार्यालय में कार्यरत एक कर्मचारी पर विशेष रूप से मनरेगा के कार्यों का ठेका लेने का आरोप लगा है। उन्होंने स्वयं इस बात को स्वीकार भी किया है। यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है कि एक सरकारी कर्मचारी कार्यालय में रहते हुए मनरेगा जैसे कार्यों का ठेका कैसे ले सकता है और उसने ऐसे कितने और काम किए हैं।
यदि कार्य के दौरान इन मजदूरों, विशेषकर नाबालिगों के साथ कोई दुर्घटना घट जाती है, तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? क्या इसकी जिम्मेदारी मनरेगा पदाधिकारी विनोद कुमार की होगी, या पंचायत मुखिया प्रतिनिधि की, या फिर ब्लॉक कर्मचारी मुकेश कुमार रजक की?
यह भी स्पष्ट हो रहा है कि यह कार्य मुखिया द्वारा किसी अन्य को और फिर उस अन्य व्यक्ति द्वारा किसी और को करवाने का जिम्मा दिया गया है। यह “सीढ़ी बनाकर काम करवाने” की प्रथा स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि काम करने और करवाने में जबरदस्त वित्तीय लाभ होने वाला है। इस प्रकार की परत-दर-परत व्यवस्था भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है, जहां जवाबदेही धुंधली हो जाती है और अनियमितताओं की गुंजाइश बढ़ जाती है।
इस पूरे प्रकरण की जानकारी और वीडियो जिला अधिकारियों को भी भेजी गई है। अब देखना यह है कि क्या इस तरह की योजनाएं वास्तव में ‘फलदायी’ और ‘लाभदायक’ होती हैं, जिनके कारण अधिकारी भी इन पर कार्रवाई करने से कतराते हैं, या फिर जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा इस भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है। यह मामला मनरेगा के तहत पारदर्शिता और जवाबदेही के अभाव को उजागर करता है, और इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि योजना का लाभ सही लाभार्थियों तक पहुंचे और बाल श्रम जैसे गंभीर मुद्दों पर लगाम लगाई जा सके।
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