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आज से शुरू हुआ जीवित्पुत्रिका व्रत: संतान की लंबी उम्र के लिए माताओं का कठिन निर्जला व्रत

Byadmin

Sep 13, 2025

 

 

जीवित्पुत्रिका व्रत, माताओं द्वारा अपनी संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है। यह व्रत तीन दिनों तक चलता है और इसकी सबसे खास बात यह है कि माताएं इस दौरान अन्न और जल का त्याग कर निर्जला उपवास करती हैं।

 

व्रत की विधि और नियम

 

जितिया व्रत की शुरुआत ‘नहाई-खाई’ से होती है। इस दिन, जो कि 13 सितंबर को है, माताएं पवित्र स्नान करके सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। भोजन में मछली, दही, कद्दू और मड़ुआ की रोटी जैसी चीजें शामिल होती हैं।

 

इसके अगले दिन, 14 सितंबर,रविवार, को मुख्य व्रत रखा जाता है। इस दिन माताएं सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक कुछ भी खाती या पीती नहीं हैं। यह व्रत का सबसे कठिन चरण होता है।

 

तीसरे दिन, 15 सितंबर, सोमवार, को व्रत का पारण किया जाता है। पारण के समय माताएं व्रत खोलती हैं और पारंपरिक पकवान जैसे नोनी का साग और झींगी की सब्जी खाती हैं।

 

जितिया की कहानी: जीमूतवाहन और पूर्वजों का महत्व

 

इस व्रत के पीछे एक पौराणिक कथा है, जो गरुड़ पुराण में वर्णित है। राजा जीमूतवाहन ने नागों के वंश की रक्षा के लिए गरुड़ को अपनी बलि देने का प्रस्ताव रखा था। उनके त्याग और परोपकार से प्रसन्न होकर, गरुड़ ने उन्हें अमरता का वरदान दिया और नागों को अभय दान दिया। इसी कारण, इस व्रत को संतान की रक्षा और कल्याण से जोड़ा गया है।

 

यह पर्व न केवल माताओं के त्याग को दर्शाता है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान का प्रतीक भी है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के दौरान किए गए धार्मिक कार्य और अनुष्ठान हमारे पितरों को भी शांति प्रदान करते हैं। पितरों का आशीर्वाद ही संतान के जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करता है।

 

यह व्रत माताओं के अटूट विश्वास और प्रेम का प्रतीक है, जो अपनी संतान के लिए किसी भी कठिनाई का सामना करने को तैयार रहती हैं।


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