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सरायकेला के ईचागढ़ में हाथियों का तांडव, किसान की एकड़ भर धान की फसल रौंदी

Byadmin

Oct 9, 2025


सरायकेला (झारखंड): जिले के ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत कुकड़ू प्रखंड के गांव बेरासी सिरुम के टोला छातारडीह में बुधवार की रात जंगली हाथियों के झुंड ने जमकर उत्पात मचाया। हाथियों ने गरीब किसान तपन महतो की लगभग एक एकड़ में लगी लहलहाती धान की फसल को पैर तले रौंदकर पूरी तरह नष्ट कर दिया।

 

तत्काल कार्रवाई की मांग

 

फसल बर्बादी की सूचना मिलते ही स्थानीय जिला परिषद उपाध्यक्ष श्रीमती मधुश्री महतो ने मामले का तत्काल संज्ञान लिया। उन्होंने डीएफओ (वन प्रभाग अधिकारी) और वन विभाग के अन्य पदाधिकारियों को फोन पर तुरंत कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

श्रीमती महतो ने अधिकारियों को हाथी के झुंड को जल्द से जल्द जंगल की ओर भगाने और प्रभावित किसानों की फसलों के नुकसान की क्षतिपूर्ति (मुआवजा) सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। साथ ही, उन्होंने ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए गांव में टॉर्च और फटका (पटाखों) की व्यवस्था करने को कहा।

 

दलमा सेंचुरी पर उठे सवाल

 

जिला परिषद उपाध्यक्ष ने इस गंभीर समस्या पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के गज परियोजना से हाथियों का झुंड पलायन करके ईचागढ़ क्षेत्र में क्यों डेरा डाल रहा है? उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षों से यह क्षेत्र हाथियों के आतंक से त्रस्त है।

उन्होंने आरोप लगाया कि जंगल में पर्याप्त भोजन न मिलने के कारण ही विशाल हाथी शाम ढलते ही अपनी भूख मिटाने के लिए गांव में प्रवेश कर रहे हैं और उपद्रव मचा रहे हैं। उन्होंने वन विभाग की निष्क्रियता पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि विभाग “कुंभकरण की नींद” में सो रहा है, जिसके कारण ग्रामीण प्रतिदिन दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं।

 

किसानों ने की बड़े मुआवजे की मांग

 

घटना से यह स्पष्ट है कि झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में जंगली हाथियों का उत्पात एक विकट समस्या बन गया है, जिससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। प्राप्त जानकारी में यह भी उल्लेख है कि हाथियों के झुंड ने किसान तपन महतो की कुल पाँच एकड़ धान की फसल को नष्ट कर दिया। जिला परिषद सदस्य ने वन विभाग से जल्द से जल्द हाथियों को भगाने और किसानों को उचित मुआवजा देने की मांग की है।

यह आवश्यक है कि वन विभाग इस मानव-हाथी संघर्ष के समाधान के लिए ठोस कदम उठाए, जिसमें हाथियों के प्राकृतिक वास और गलियारों (Corridors) का संरक्षण शामिल हो, ताकि किसान और ग्रामीण सुरक्षित रह सकें।


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