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संपादकीय : आइए 2025 को उम्मीदों सम्भावनाओं का वर्ष बनाएं…?

ByBiru Gupta

Jan 1, 2025

विनोद आनंद

वर्ष 2024 के अवसान और 2025 के आगमन पर हम अह्लादित हैं! इस नई आशाओं के साथ हमने नए वर्ष में प्रवेश किया है.

आशा है यह वर्ष हमारे जीवन में खुशियाँ लाये….और भारत के विकास दुनिया में शांति और समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए लोग आगे आये.

गुजरे साल में टकराव, हिंसा और हादसों का सिलसिला चलता रहा,कई बदलाव भी हुए. हमने कई महत्वपूर्ण लोगों को खोया भी. अभी-अभी हमने आदरणीय पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को खोया है यें सिर्फ भारत हीं नहीं बल्कि दुनिया भर के लोगों के लिए एक ऐसे उदाहरण थे जिनकी विनम्रता, सादगी,सुचिता और प्रखर बुद्धि ने वैश्विक स्तर पर लोगों को प्रभावित किया. इतिहास इन्हें कभी नहीं भूलेगा.

 

वे विश्व के महान अर्थशास्त्री में से एक थे. भारत को आर्थिक संकट से निकाल कर विकास के बुनियाद की नींव रखी थी. भारत के वित्त मंत्री और फिर 10 वर्षों तक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने जो किया उस से भारत आर्थिक मंच पर उभर कर सामने आया. वैश्विक मंदी की मार से भी भारत बच गया और हमारी अर्थनीति भी मज़बूत हुई.

 

पर दुर्भाग्य रहा कि भारत में गिरते राजनितिक प्रतिस्पर्धा और सत्ता तक पहुँचने की होड़ ने उनके कार्यों, उनके व्यक्तित्व, सद्गुणों पर अभिमान करने के बजाय उन्हें टारगेट किया. लेकिन किसी की महानता, उनके सद्गुण और उसका कार्य कभी भी किसी आलोचना से प्रभावित नहीं होता. आने वाले समय में उसका मूल्यांकन होता है.जो आज हो रहा है. दुनियां के साथ साथ उनके आलोचक भी इसे बखूबी समझ रहे हैं.

 

इसीलिए हमें यह समझना चाहिए कि राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा की कोई सीमा नहीं होती, मगर उससे देश का विकास और आमजन की बेहतरी प्रभावित न हो, यह सुनिश्चित करना हम सबका कर्तव्य है.

 

आज राजनितिक मर्यादा गिरा है. राजनेता अपने उद्देश्यों से भटक गए हैं. भारत की जनता उन्हें इस उम्मीद से संसद भेजा कि हमारी बेहतरी के लिए वे हमारे शासन व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करें और हमारे बेहतरी के लिए विकास और समावेशी समाज के लिए सफल प्रबंधन करें.

 

लेकिन यह उम्मीद साकार होता नहीं दिख रहा है. संवैधानिक पद पर बैठे लोगों कि भाषा,अपने विरोधी के प्रति उनके आचरण, भारत के संवैधानिक संस्थाओं का दुरूपयोग, एक दूसरे के प्रति बदले की भावना ने भारतीय लोकतंत्र की मर्यादा को तार-तार कर दिया है.यह हमारे संस्कृति और परम्परा के विपरीत है. जिस पर राजनेताओं को गंभीरता से विचार करना जरुरी है,

 

संसद को अपने राजनीतिक अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए, बल्कि जनता ने जिस जिम्मेवारी के साथ आप को वहां तक पहुँचाया है उसका निर्वहन ईमानदारी से करना चाहिए, आशा है इस आनेवाले वर्ष में इस बात को ध्यान रखा जायेगा.

 

आशा है कि हमने नए वर्ष में शांति और समाधान की सशक्त हुई संभावनाओं के साथ कदम रखा है.आज वैश्विक दौर में हम आगे बढ़ रहे हैं कथित तौर पर हम विश्व के बड़े आर्थिक शक्ति बनने के दिशा में अग्रसर हैं. अभी हम विश्व के पांचवे आर्थिक शक्ति हैं, आने वाले दिनों में तीसरे पयदान पर पहुंचने वाले हैं लेकिन इसके वाबजूद आज भी 80 करोड़ से भी ज्यादा लोगों मुफ्त राशन पर रहना पड़ता है.

 

आज भी भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली कुल आबादी में से 25.7% लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं, जबकि शहरी इलाकों में स्थिति थोड़ी बेहतर है, जहाँ 13.7% आबादी गरीबी रेखा से नीचे रह रही है.

 

संयुक्तराष्ट्र द्वारा जारी “वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2024” में कहा गया है कि भारत में सबसे अधिक गरीब रहते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में 110 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी में जीवन काट रहे हैं, जिनमें से 23.4 करोड़ भारतीय हैं। मतलब कि बहुआयामी गरीबी से जूझ रही 21 फीसदी आबादी भारत में है।

 

सितंबर, 2023 के अंत में विदेशी कर्ज 637.1 अरब डॉलर था. वित्‍त मंत्रालय ने ‘भारत की तिमाही विदेशी ऋण’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा है कि सितंबर, 2024 में देश का विदेशी कर्ज 711.8 अरब डॉलर था, जो जून, 2024 के मुकाबले 29.6 अरब डॉलर (करीब 2.52 लाख करोड़ रुपये) अधिक है.हमें इस असंतुलन को व्यवस्थित करना होगा. तभी हम मज़बूत भारत और आत्मनिर्भर भारत की कल्पना कर सकते हैं.

 

आज हम इस तरह कई चुनौतियों से गुजर रहे हैं, लेकिन इसके वाबजूद सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों को अपनी व्यक्तिगत महत्वकांक्षाएं और पक्ष विपक्ष को नींचा दिखाने, बदले की भावना से कार्य करने में दिन बीत रहा है. उम्मीद है इस आने वाले वर्षों में राजनेता इस मायाजाल से बाहर निकले और देश की विकास,जनता के बेहतरी,और अपने गरिमा की रक्षा के दिशा में सही चिंतन कर सके.

 

आज हमें समय के महत्व को समझना होगा और अपने दायित्व को ईमानदारी से निभाना होगा. अतीत में किसने क्या किया उसकी आलोचना के बजाय आप क्या कर रहे हैं अपनी शक्ति को उस पर केंद्रित कीजिये क्योंकि इतिहास उसे हीं याद रखेगा, आपने जो किया या आपके पूर्व में जो कोई कुछ किया उसकी विवेचना आपको करने में समय वर्बाद नहीं करना चाहिए.इसको आनेवाले पीढ़ी के लिए छोड़ दीजिए, इसका मूल्यांकन वही करेगा.

 

आपको इस लिए लोगों ने मौका दिया है कि आप कुछ पहले से बेहतर कीजिये उम्मीद है हमारे राजनेता इस बात का संकल्प लेंगें और बेहतर करने के दिशा में अग्रसर होंगे.

 

अंत में देश की सभी सियासी पार्टियां, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन एवं आमजन यह संकल्प लें कि इस साल को सद्भाव एवं सहमति का दौर बनाने के दिशा में काम करेंगे और अतीत से सबक लेकर भविष्य को वेहतर बनाएंगे.


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