

सरायकेला: सरायकेला जिले के ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र में दुर्गा पूजा के आगमन का आभास दसई नाच से होता है। संथाल आदिवासी समुदाय के लोग इस समय अपने पारंपरिक परिधानों में, बाजे-गाजे के साथ और मोर का पंख लगाकर, दशई नाच के माध्यम से महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा की खोज में निकलते हैं।
परंपरा और धार्मिक कथा

यह प्राचीन परंपरा एक कथा पर आधारित है, जिसके अनुसार:

मां पार्वती और शिव का झगड़ा: माना जाता है कि एक बार मां पार्वती और भगवान शिव के बीच झगड़ा हो गया था, जिसके बाद मां पार्वती अपने मायके चली गईं।
खोज में निकले शिव: भगवान शिव उन्हें ढूंढने निकले और उन्होंने आदिवासी समुदाय के लोगों से मदद मांगी।
दशई नाच की शुरुआत: आदिवासी समुदाय ने भगवान शिव को मदद का वचन दिया। इसके बाद, भगवान शिव और आदिवासी मिलकर मां दुर्गा की खोज में निकल पड़े। काफी खोजबीन के बाद, उन्होंने मां महिषासुर मर्दिनी को उनके मायके में ढूंढा। इसके बाद सभी लोग अपने गाँव वापस लौट आए।
दसई नाच का महत्व
सांस्कृतिक धरोहर: दशई नाच आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे वे पीढ़ियों से मनाते आ रहे हैं।
सामुदायिक एकता: यह नाच समुदाय के लोगों को एकजुट करता है और उनकी एकता और सहयोग की भावना को दर्शाता है।
दुर्गा पूजा का संदेश: पहले के जमाने में, जब दूरदराज के गाँवों में सूचना के साधन कम थे, तो इस नाच को देखकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लोगों को पता चलता था कि दुर्गा पूजा नजदीक है और वे नए वस्त्रों की खरीदारी शुरू कर देते थे।
दुर्गा पूजा के दौरान, आदिवासी समुदाय के लोग कई टोलियों में बंटकर इस परंपरा को निभाते हैं और अपनी सांस्कृतिक विरासत को जीवंत बनाए रखते हैं।
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