

बबली सिंह चौहान
दशहरा, बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की विजय का महान पर्व है। हर साल हम रावण के विशाल पुतले का दहन कर इस परंपरा को निभाते हैं, लेकिन क्या यह दहन आज के समाज की वास्तविक बुराइयों का प्रतिनिधित्व करता है? इस वर्ष हमें एक नया और मार्मिक संकल्प लेना चाहिए: रावण का नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, महिला अत्याचार और भ्रूणहत्या रूपी आधुनिक दानवों का पुतला जलाया जाए!
आज के युग में असली रावण अदृश्य रूप में हमारे बीच मौजूद है। भ्रष्टाचार एक ऐसा दानव है जो हमारी व्यवस्था को भीतर से खोखला कर रहा है, जिससे आम आदमी का विश्वास डगमगा रहा है। यह हर विभाग, हर स्तर पर अपनी जड़ें जमा चुका है, और हमारे देश की प्रगति को रोक रहा है।

दूसरा भयावह रावण है महिला अत्याचार। आए दिन मासूम बच्चियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं तक पर होने वाले अनाचार और हिंसा की खबरें हमें शर्मसार करती हैं। यह दानव समाज की आधी आबादी को भय और असुरक्षा में जीने को मजबूर कर रहा है।

तीसरा क्रूर दानव भ्रूणहत्या है, जो कोख में ही बच्चियों को मौत के घाट उतार देता है। यह न केवल एक जघन्य अपराध है, बल्कि समाज के लिंगानुपात को बिगाड़ कर एक असंतुलित भविष्य की नींव रख रहा है।
इस दशहरा, हमें इन वास्तविक सामाजिक बुराइयों के पुतले जलाने चाहिए। यह दहन सिर्फ एक प्रतीकात्मक क्रिया नहीं, बल्कि परिवर्तन की प्रतिज्ञा होनी चाहिए। जब तक हम भ्रष्टाचार की लंका को नहीं जलाते, महिला अत्याचार के दस सिर नहीं काटते और भ्रूणहत्या के राक्षसी कृत्य को समाप्त नहीं करते, तब तक सच्चे अर्थों में बुराई पर अच्छाई की विजय संभव नहीं होगी। यह समय है कि हम अपने अंतर्मन में छिपी इन बुराइयों को पहचानें और उनका सामूहिक रूप से अंत करें, तभी हमारा समाज सही मायने में रामराज्य की ओर अग्रसर होगा।
रावण का नहीं, भ्रष्टाचार,महिला अत्याचार, भ्रूणहत्या रूपी रावण का पुतला जलाया जाए
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