

पटना: बच्चों के खिलाफ अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए बचाव और कानूनी कार्रवाई के बीच की गहरी खाई को पाटने की तत्काल आवश्यकता है। पटना में ‘भारत में मानव दुर्व्यापार: समन्वय और रोकथाम तंत्र को मजबूत करना’ विषय पर आयोजित एक राज्यस्तरीय परामर्श बैठक में इस बात पर जोर दिया गया। बैठक में बच्चों की ट्रैफिकिंग, बाल श्रम और यौन शोषण जैसे गंभीर अपराधों से निपटने के लिए बेहतर समन्वय, जवाबदेही और रोकथाम की रणनीतियों पर चर्चा हुई।
यह परामर्श ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन’ (JRC) ने बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (BSLSA) के सहयोग से आयोजित किया। JRC, जो देश भर में 250 से ज्यादा संगठनों का एक नेटवर्क है, ने अप्रैल 2024 से अप्रैल 2025 के बीच 56,242 बच्चों को ट्रैफिकिंग गिरोहों से बचाया है और 38,353 मामलों में कानूनी कार्रवाई शुरू की है। बिहार में, JRC के सहयोगी संगठनों ने 2023 से अब तक 4991 बच्चों को मुक्त कराया है और 21,485 बाल विवाह रुकवाए हैं।

राज्य के अधिकारियों ने बच्चों के खिलाफ अपराधों को रोकने में सामुदायिक भागीदारी के महत्व पर प्रकाश डाला। राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य हुलेश मांझी ने कहा कि “बच्चों को बचाना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।” BSLSA की सदस्य सचिव शिल्पी सोनिराज ने न्याय के साथ-साथ पीड़ितों के न्यायपूर्ण पुनर्वास की आवश्यकता पर जोर दिया।

बिहार पुलिस के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कमजोर वर्ग) डॉ. अमित कुमार जैन ने कहा कि बच्चों की ट्रैफिकिंग से निपटने के लिए विभिन्न विभागों के बीच मजबूत समन्वय जरूरी है। JRC के राष्ट्रीय संयोजक रवि कांत ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) जैसे मजबूत कानूनों की सराहना करते हुए कहा कि अब इन कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन जरूरी है। उन्होंने ट्रैफिकिंग को एक संगठित अपराध मानते हुए इसके लिए समयबद्ध सुनवाई, लापता बच्चों पर त्वरित कार्रवाई और एक मजबूत अभियोजन तंत्र की आवश्यकता पर जोर दिया।
इस बैठक में कई वरिष्ठ अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए, जिन्होंने मौजूदा कानूनी ढांचे की समीक्षा की और बच्चों की ट्रैफिकिंग के उन्मूलन के लिए एक समयबद्ध कार्ययोजना बनाने की सिफारिश की। यह ध्यान देने योग्य है कि नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्करी के बाद मानव ट्रैफिकिंग दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है।
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