
संवाददाता: नरेश विश्वकर्मा, निरसा
निरसा। आजकल समाज में एक कटु सत्य स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है—जीवन का प्राथमिक संघर्ष, ‘रोटी’। यह रोटी केवल अनाज का टुकड़ा नहीं है, बल्कि जीवनयापन, धन और सत्ता का प्रतीक है, जिसके लिए हर कोई लड़ रहा है। यह संघर्ष केवल मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पशु-जगत में भी उतना ही तीखा है।

संवाददाता के अवलोकन में, इसी रोटी के लिए जहाँ इंसान हत्याएं कर रहे हैं, भीख मांग रहे हैं, और कई लोग भूखे मर रहे हैं; वहीं बड़े-बड़े अफसर ‘विकास’ के नाम पर कमीशन और अपराध कर रहे हैं। यहाँ तक कि जीव-जंतु भी रोटी की तलाश में घरों में घुसकर लाठी की मार खाने को मजबूर हैं।

बंदर ने दिया संघर्ष का अनूठा दृश्य
सोमवार को निरसा में इसी संघर्ष का एक जीवंत और अनोखा दृश्य देखने को मिला। एक बंदर अपने हिस्से की एक रोटी बचाने के लिए लाठी लेकर बीच सड़क पर निकल आया। उसके सामने चार कुत्ते थे, जो उसकी रोटी छीनने आए थे। बंदर ने लाठी के बल पर उन चारों कुत्तों को मारकर भगा दिया।
यह दृश्य वहाँ मौजूद लोगों के लिए एक गहरी सीख थी।
संघर्ष केवल धन और रोटी का है
इस घटना ने एक प्राचीन मान्यता को वर्तमान संदर्भ में सिद्ध किया: कलिकाल में केवल रोटी और धन की ही लड़ाई होगी, चाहे वह लड़ाई मनुष्य (ईशान) लड़ें, या फिर चौपाए जानवर और अन्य जीव-जंतु।
यह घटना दर्शाती है कि जीवन के मूलभूत संसाधन (रोटी/धन) के लिए हर प्राणी अपना अस्तित्व बचाने को मजबूर है। निरसा में बंदर का लाठी उठाना, मनुष्य द्वारा अपने हक के लिए उठाए गए हर कदम का एक प्रतीकात्मक प्रतिबिंब है।
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