

लोयाबाद (धनबाद): हजरत सैयद अब्दुल अज़ीज़ शाह रहमतुल्लाह अलैह के 88वें सालाना उर्स के दूसरे दिन सोमवार की शाम लोयाबाद दरगाह परिसर पूरी तरह से सूफ़ियाना रंग में डूब गया। इस मौके पर एक शानदार नातिया जलसे का आयोजन किया गया, जिसने पूरे माहौल को रूहानी और इश्क-ए-मुहम्मदी के जज़्बात से सराबोर कर दिया।
नातिया जलसे की विशेषताएँ

कलाम की प्रस्तुति: जलसे की शुरुआत तिलावत-ए-क़ुरआन से हुई, जिसके बाद नाते पैग़ंबर का सिलसिला शुरू हुआ।

नामचीन नातेख़्वां: भागलपुर और स्थानीय इलाक़े के नामचीन नातेख़्वां, जिनमें रहमत हुसैन, शाहनवाज हसान, जुनैद रेज़ा हबीबी, मनौवर अजीजी, गुलाम मुस्तफ़ा और स्थानीय युवा नातेख़्वां शामिल थे, ने अपनी बुलंद आवाज़ में नात पेश कीं।
रूहानी माहौल: “या नबी सलाम अलैक़” और “मेरे आका आए हैं” जैसी नातों पर श्रोता मुग्ध होकर झूम उठे।
तक़रीर और तालीम: मंच पर मौजूद भागलपुर के सैयद शाह नूर अताई शाहबाजी ने तक़रीर करते हुए उर्स की अहमियत और औलिया-ए-किराम की तालीमात पर रौशनी डाली।
मोहब्बत और इंसानियत का पैगाम: मौलाना अब्दुल बारी क़ासमी ने औलिया अल्लाह की ज़िंदगी को मोहब्बत, इंसानियत और सब्र का पैग़ाम बताया। उन्होंने नौजवानों से दीन की सही तालीम हासिल करने और समाज में अमन व भाईचारे को मजबूत करने की अपील की।
गंगा-जमुनी तहज़ीब की झलक
इस कार्यक्रम का सबसे अहम पहलू गंगा-जमुनी तहज़ीब की झलक रही। उर्स में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग बड़ी तादाद में शामिल हुए और बाबा की दरगाह पर फ़ातेहा पढ़ी। रात देर तक चले इस जलसे में अकीदतमंदों की भारी भीड़ रही।
उर्स कमेटी के सदस्यों ने कहा कि उर्स का मकसद सिर्फ़ मज़हबी रस्म निभाना नहीं, बल्कि मोहब्बत और इंसानियत का पैग़ाम देना है। कार्यक्रम के अंत में मुल्क की सलामती और अमन-ओ-चैन के लिए दुआ की गई।
उर्स को सफल बनाने में निसार मंसूरी, कलीम अंसारी, मो मकसूद अंसारी, अनवर मुखिया, सिकन्दर आज़म, मो मुस्तफा आदि का सराहनीय योगदान रहा।
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