

*नयी दिल्ली:* भारत के अलग-अलग हिस्सों में दशहरा (विजयादशमी) अलग-अलग परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है. इनमें से एक खास परंपरा है दशहरे पर जलेबी खाना. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस दिन जलेबी क्यों खाई जाती है?
इसके पीछे सिर्फ स्वाद का ही कारण नहीं, बल्कि गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता भी जुड़ी हुई है.

*जलेबी और शशकुली का संबंध*

धार्मिक ग्रंथों और लोककथाओं में जलेबी को शशकुली कहा गया है. मान्यता है कि यह व्यंजन भगवान राम को बेहद प्रिय था. जब श्रीराम ने रावण का वध कर विजय प्राप्त की, तो अयोध्या लौटने पर उनकी इस जीत का जश्न मनाया गया. इस अवसर पर उन्हें प्रिय शशकुली यानी आज की जलेबी खिलाई गई. तभी से विजयादशमी पर जलेबी खाने की परंपरा जुड़ी हुई मानी जाती है.
*विजय का प्रतीक है मीठा*
जलेबी गोल आकार में बनाई जाती है, जो जीवन के चक्र और अनंतता का प्रतीक है. यह विजय के बाद मिलने वाली मिठास और समृद्धि का संकेत भी है. जब लोग दशहरे पर जलेबी खाते हैं तो उसका भाव यह होता है कि बुराई पर जीत के बाद जीवन में मिठास, सौभाग्य और सुख-समृद्धि बनी रहे.
*लोक मान्यता और स्वास्थ्य दृष्टिकोण*
कुछ जगहों पर मान्यता है कि दशहरे से सर्दियों की शुरुआत मानी जाती है. इस मौसम में मीठा और तला हुआ व्यंजन खाने से शरीर को ऊर्जा और गर्माहट मिलती है. इसलिए भी दशहरे पर जलेबी खाने का रिवाज चला आ रहा है.
*नवरात्रि और दशहरे से जुड़ी मिठास*
नवरात्रि के नौ दिनों तक भक्त साधना और संयम का पालन करते हैं. विजयादशमी यानी दशहरा उस तपस्या के समापन का प्रतीक है. इसलिए इस दिन मीठा खाकर खुशी और आनंद का उत्सव मनाया जाता है. जलेबी इस अवसर की सबसे खास और लोकप्रिय मिठाई बन गई.
दशहरे पर जलेबी खाना केवल स्वाद या परंपरा भर नहीं है, बल्कि यह भगवान राम की विजय, जीवन में मिठास और ऊर्जा का प्रतीक भी है. यह परंपरा आज भी लोगों को याद दिलाती है कि जैसे श्रीराम ने बुराई पर विजय पाई, वैसे ही हमें भी अपने जीवन की नकारात्मकताओं को हराकर सुख और मिठास की ओर बढ़ना चाहिए.
डिस्कलेमर : इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है.न्यूज फास्ट इसकी पुष्टि नहीं करता है.
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