

सरायकेला। दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी क्षेत्र इस समय गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। एक तरफ बेशकीमती साल के पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई की खबर है, तो दूसरी तरफ वन एवं पर्यावरण विभाग की लापरवाही के कारण ग्रामीण और पर्यटक बदहाल सड़कों से परेशान हैं।
साल के पेड़ों की अवैध कटाई, हिसाब माँगा
सेंचुरी के मकुलकोचा स्थित जंगल में सैकड़ों की संख्या में बेस कीमती साल के पेड़ काटे गए हैं, जिसकी लॉगिंग (रौली) गायब है। इस गंभीर मामले को लेकर ग्रामीणों ने डीएफओ (DFO) को एक ज्ञापन सौंपा है और वन विभाग से जवाब माँगा है।

ग्रामीणों ने डीएफओ सवा आलम अंसारी से पूछा है कि सैकड़ों साल के पेड़ों की कटाई के बाद उसकी रौली कहाँ गायब हो गई। उन्होंने पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिला का उदाहरण देते हुए कहा कि वहाँ कटाई किए गए पेड़ों का रिकॉर्ड रखा जाता है, लेकिन दलमा के हजारों पेड़ों का हिसाब किसके पास है। पश्चिम रेंच के रेंजर दिनेश चंद्रा ने इसे जांच का विषय बताया है।

हाथियों का पलायन और जर्जर सड़कें
दलमा सेंचुरी, जो कि गज परियोजना से जुड़ी हुई है, वहाँ हाथियों का विचरण क्षेत्र दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है। लापरवाही के कारण हाथियों के झुंड पिछले पाँच वर्षों से पलायन कर रहे हैं और अब मात्र एक से तीन हाथी भूले-भटके ही दिखाई देते हैं।
इसके अलावा, चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में दलमा के तराई में बसे आदिवासी गाँव के ग्रामीण और पर्यटक जर्जर सड़कों से परेशान हैं। चाकुलिया से मुख्य चेकनाका जाने वाली सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे हैं और उनमें पानी भरा हुआ है, जिससे आवागमन मुश्किल हो गया है और दुर्घटना की संभावना बढ़ गई है। पहाडीह से बाध डीह और फाड़ेगा तक के रास्ते कीचड़ से भरे हैं, जिससे गर्भवती महिलाओं और गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को अस्पताल ले जाने में भारी कठिनाई होती है।
इको सेंसेटिव जोन में विकास की उपेक्षा
दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को इको सेंसेटिव जोन घोषित किए जाने के बावजूद, यहाँ विकास की गति धीमी है। झारखंड मुक्ति वाहिनी के संयोजक चंदन सिंह की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि स्थानीय संस्कृति को पर्यटकों को दिखाने के बावजूद, उनके वेलफेयर के कार्यों में कोताही बरती जा रही है।
ग्रामीणों ने गुजरात की जीआईआर (GIR) योजना की तरह ही, दलमा के इको सेंसेटिव जोन में बसे आदिवासी समुदाय को रोजगार और विकास से जोड़ने वाली योजनाओं का लाभ देने की मांग की है। स्वरोजगार नहीं मिलने के कारण आदिवासी लोग शहरी क्षेत्रों में मजदूरी करने पर मजबूर हैं। ग्रामीणों ने वन एवं पर्यावरण विभाग से जल्द से जल्द सड़क की मरम्मत कराने और जंगल की आग बुझाने वाले आदिवासियों को सुरक्षा उपकरण और समय पर मजदूरी देने की भी मांग की है।
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