

लखीसराय ( सुजीत कुमार)- बच्ची से बलात्कार के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर तीखी टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट की रोक को गैरसरकारी संगठन विकासार्थ ट्रस्ट ने बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षण की दिशा में अहम कदम करार दिया है। शीर्ष अदालत ने इस फैसले के खिलाफ जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) की विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार करते हुए उसे पीड़िता की पैरवी की इजाजत दी है। बाल अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए देश के 416 जिलों में काम कर रहे 250 से भी ज्यादा गैर सरकारी संगठनों का नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन (जेआरसी) इस कानूनी लड़ाई की अगुआई करेगा ताकि पीड़िता की गरिमा और अधिकारों की रक्षा हो सके और उसके साथ न्याय सुनिश्चित हो। लखीसराय जिले में बाल अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए कार्य कर रहा विकासार्थ ट्रस्ट जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन का एक अहम सहयोगी है। विकासार्थ ट्रस्ट की सचिव सुनीता सिंह ने कहा अगर देश में एक बच्चा अन्याय शिकार है तो जेआरसी उसके साथ है। न्यायपालिका बच्चों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील हैं जो सुप्रीम कोर्ट के मामले का स्वतः संज्ञान लेने से स्पष्ट है जी आर सी अब इस बच्ची को न्याय दिलाने के प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ेगा जीआर सी बच्चों के लिए एक न्यायपूर्ण दुनिया बनाने की लड़ाई लड़ रहा है और हम जिले से बच्चों के खिलाफ बाल विवाह, बाल शोषण और बाल मजदूरी जैसे अपराधों के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के साथ ही तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह स्तब्ध करने वाला और संवेदनशील फैसला है। इलाहाबाद कोर्ट ने 11 साल की एक पीड़िता के मामले में फैसले में कहा था कि वक्ष पकड़ना, सलवार का नादा खोलना और उसे घसीट कर पुलिया के नीचे ले जाने को बलात्कार का प्रयास नहीं माना जा सकता। शीर्ष अदालत ने भारत सरकार उतर प्रदेश सरकार और मामले से जुड़ी सभी पक्षों को नोटिस जारी किया है। मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति बी आर गवइ और न्याय मूर्ति ए जी की खंड पीठ में हाई कोर्ट के फैसले में जाहिर तौर पर नजर आने वाली असंवेदनशीलता पर कड़ी आपत्ति जताई और उसकी टिप्पणी को चौकाने वाला और कानून की किसी भी समझ से रहित करार दिया है। जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन और पीड़िता के परिवार की ओर से अधिवक्ता रचना त्यागी ने कहा इस मामले में साढ़े तीन साल से ज्यादा समय तक कोई एफ आई आर दर्ज नहीं की गई और तीन साल से ज्यादा समय तक कानूनी कार्यवाही बिना किसी औपचारिक जांच के चलती रही। एक गरीब और कमजोर परिवार की इस बच्ची के साथ यह लापरवाही गंभीर अन्याय है हमें इस बात से राहत मिली कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारी विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार कर लिया है। हम पीड़िता की हर संभव मदद और उसे न्याय दिलाने के लिए प्रतिबंध है। खंड पीठ ने विवादित फैसले पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि फैसले में की गई कुछ टिप्पणियां विशेष रूप से पैरा 21, 24 और 26 के सामग्रियां घोर असंवेदनशील है। पीठ ने कहा कि यह फैसला चार महीने लंबी विचार विमर्श की प्रक्रिया के बाद आया फिर भी यह अमानवीय और कानून के सिद्धांतों के विपरीत है। नीचली अदालत इसे बलात्कार के प्रयास का मामला मानते हुए आरोपियों पवन और आकाश को आईपीएस की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत तलब किया था लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि बच्ची के वक्ष को छूना और उसे जबरन पुलिया के नीचे घसीट कर ले जाना फिर राहगीरों के पहुंचते ही भाग जाना कानूनन बलात्कार के प्रयास आईपीसी की धारा 376 /511 या पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है। इस आधार पर हाई कोर्ट ने आरोपी पर लगाए गए आरोपों में फेर बदल कर दिया और उस पर धारा 354 भी और पॉक्सो एक्ट की धारा 9/10 लगाई गई।
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