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90 के दशक में सामा-चकेवा पर्व में धनबाद आयी थीं शारदा सिन्हा

BySanjay Chouhan

Nov 7, 2024

 

लोक गायिका शारदा सिन्हा के निधन की खबर से कोयलांचल में शोक की लहर दौड़ गयी.


धनबाद : लोक गायिका शारदा सिन्हा के निधन की खबर से कोयलांचल में शोक की लहर दौड़ गयी. छठ गीतों के जरिये घर-घर तक पहुंच रखने वाली इस लोक गायिका के निधन से समाज का हर तबका शोकाकुल है. 90 के दशक में शारदा सिन्हा एक बार धनबाद में विद्यापति समाज की तरफ से आयोजित सामा-चकेवा पर्व के समापन समारोह में आयी थीं. वह 80 के दशक में दुर्गा पूजा कमेटी के आमंत्रण पर धनसार भी आयीं थीं.

जिला परिषद मैदान में हुआ था कार्यक्रम :
विद्यापति समाज की तरफ से हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन सामा-चकेवा पर्व का समापन धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन मिथिला के लोक कलाकार आते रहे हैं. इसी कार्यक्रम में एक बार लोक गायिका शारदा सिन्हा भी शामिल हुई थीं. विद्यापति समाज के पदाधिकारियों के अनुसार जिला परिषद मैदान में यह कार्यक्रम हुआ था. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मिथिलांचलवासी शामिल हुए थे. श्रीमती सिन्हा ने कई लोकगीत पेश कीं. इसमें छठ का गीत भी शामिल था.
छठ व्रतियों ने कहा बहुत याद आयेंगी शारदा सिन्हा :
बिहार कोकिला के नाम से प्रसिद्ध शारदा सिन्हा के निधन की सूचना से कोयलांचल में शोक की लहर दौड़ पड़ी. प्रशंसकों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की. सोशल मीडिया पर भी उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी.
छठ के पहले दिन ही जाना दुखद

दीक्षा प्रिया :
मैंने इस साल पहली बार छठ किया है. बचपन से शारदा सिन्हा के गाये हुए छठ के गाने सुनती आयी हूं. उन्होंने ही छठ महापर्व के लोक गीतों को दुनिया भर में प्रसिद्धि दिलायी है. उनकी कमी कभी पूरी नहीं हो सकती है. मैंने उनसे एक बार ‘मैंने प्यार किया’ फिल्म के सेट पर उनसे मुलाकात भी की थी. छठ के पहले दिन ही उनका जाना दुखद है.
शीला सिंह :
मैं पिछले 40 वर्षों से छठ कर रही हूं. चैती एवं कार्तिक दोनों छठ करती हूं. जब से छठ शुरू की, तब से ही शारदा सिन्हा द्वारा गायी गयी छठ गीतों को सुन रही हूं. उनके छठ के गीतों को सुन कर रोम-रोम सिहर उठता था. उनका असमय जाना बहुत खलेगा. उनकी कमी कभी पूरी नहीं हो सकती.
निधि जायसवाल :
लोक गायिका शारदा सिन्हा का इस तरह जाना बहुत दु:खद है. पिछले कई वर्षों से छठ व्रत कर रही हूं. छठ से पहले से ही घर में छठ के गीत बजने लगता है. छठ गीत का मतलब ही शारदा सिन्हा होता है. ऐसे लोक कलाकार को आने वाली पीढ़ी सदियों याद करेंगी.
सुनीता सहाय :
शारदा सिन्हा के बिना छठ गीत की कल्पना भी नहीं की जा सकती. वर्षों से उनके गाये लोक गीतों में खासकर छठ गीत सुनती आ रही हूं. शायद ही कोई घर होगा, जहां छठ के समय शारदा सिन्हा के गीत नहीं बजते हों. उनके निधन की सूचना से मन व्यथित है.
सरोज सिंह :
मेरे बच्चे एवं शारदा सिन्हा के बच्चे ने एक ही स्कूल में पढ़ाई की है. दोनों बेटे उनके दोनों बच्चों के क्लासमेट थे. इसलिए हर वर्ष जरूर मिलना होता था. उनसे बहुत ही पारिवारिक संबंध है. उनके निधन की सूचना से मर्माहत हूं. ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें.


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