

झारखंड के देवघर में सेना के जवानों ने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करते हुए रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम दिया लेकिन तीन पर्यटकों को भरसक प्रयास के बावजूद नहीं बचा पाए।रेस्क्यू के दौरान दुर्घटना हुई और लोग हेलिकॉप्टर से गिर गए ।
जब आप विपरीत परिस्थितियों में किसी जटिल ऑपरेशन को अंजाम देते हैं तो इस तरह के हादसों की सम्भावना हमेशा बनी रहती है ।
सैनिकों की तरह डाक्टर्ज़ भी ऐसी जटिल परिस्थितियों से प्रतिदिन जूझते हैं ।ज़रूरी नहीं कि हर बार चिकित्सक किसी जटिल ऑपरेशन में सफल हों व रोगी को बचा पाएँ।
अब्स्टेट्रिक्स में पीपीएच एक ऐसी ही स्थिति होती है ।हर वर्ष भारत ही नहीं बल्कि विकसित देशों में भी बहुत सी प्रसूताओं की दुखद मृत्यु पीपीएच ,eclampsia,ऐम्नीआटिक फ़्लूइड एम्बलिज़म ,डीआईसी इत्यादि जटिलताओं के कारण होती है ।डाक्टर्ज़ के बेहतरीन प्रयासों के बावजूद कभी कभी परिणाम आशा के अनुरूप नहीं होते व प्रसूता की मृत्यु हो जाती है ।दिल्ली का AIIMS हो या अमेरिका का कोई बड़ा अस्पताल, इन जटिलताएँ से कोई अस्पताल अछूता नहीं ।लालसोट की आशा देवी हो या मुंबई की स्मिता पाटिल हर वर्ष बहुत सी युवा महिलाओं को हम प्रसव के दौरान खो देते हैं ।पिछले पछत्तर सालों में मटर्नल मॉर्टैलिटी रेट को कम करने में देश की प्रसूति रोग विशेषज्ञों ने शानदार सफ़लता भी पाई है लेकिन ये रेट कभी शून्य नहीं होगी ,ये बात हमें समझनी होगी ।
झारखंड हो या देश के विभिन्न प्रदेश झारखंड में रेस्क्यू के दौरान कोई तकनीकी ख़राबी हुई और हेलिकॉप्टर से तीन व्यक्ति गिर गये तो क्या उन बहादुर सैनिकों के प्रति हमारा सम्मान कम हो जाना चाहिए ? क्या हम उन सैनिकों के साथ भी वैसा ही दुर्व्यवहार करेंगे जैसा आए दिन चिकित्सकों के साथ करते हैं ? हादसे के बाद बल्या जोशी जैसा कोई समाज कंटक सेना के ख़िलाफ़ धरना प्रदर्शन करने के लिए परिवार को उकसाए तो क्या देश उसे माफ़ करेगा ?
हमारे वीर सैनिकों ने चालीस में से सैंतीस लोगों को अपनी जान पर खेल कर बचाया पूरा देश उन सैनिकों पर गर्व कर रहा है ,करना भी चाहिए ;ये आसान कार्य न था ।हमारे सैनिक ये पराक्रम न दिखाते तो मरने वालों की संख्या कहीं अधिक होती ।
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