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मालपूट मेलोडीज़: ओडिशा के ग्रामीण सपनों का विश्व मंच

Byadmin

Nov 29, 2025

 

 

*मुंबई से अमरनाथ की रिपोर्ट*

 

ओडिशा के फिल्म जगत के लिए यह एक गर्व का क्षण है! विशाल पटनायक द्वारा निर्देशित और कौशिक दास द्वारा निर्मित उड़िया भाषा की फीचर फिल्म “मालपूट मेलोडीज़” ने 56वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) 2025 के इंडियन पैनोरमा फीचर फिल्म सेक्शन में जगह बनाकर क्षेत्रीय सिनेमा के लिए एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। यह इस प्रतिष्ठित खंड में चयनित होने वाली एकमात्र उड़िया फिल्म है।

 

*कोरापुट की धरती से उपजी धुन*

 

“मालपूट मेलोडीज़” सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि ग्रामीण ओडिशा की आत्मा का एक ईमानदार चित्रण है। कौस्तव ड्रीमवर्क्स स्टूडियोज़ के बैनर तले निर्मित यह फिल्म, कोरापुट की हरी-भरी पहाड़ियों और हवा में तैरती बांसुरी की धुन से ओडिशा के दिल की बात कहती है—नरमी से, सच्चाई से। यह दर्शाता है कि सबसे सरल कहानियाँ भी, जब ईमानदारी से सुनाई जाती हैं, तो उनकी गूंज दूर तक पहुँचती है।

 

*चार कहानियों का मधुर संगम*

 

“मालपूट मेलोडीज़” एक नहीं, बल्कि चार कहानियों का एक संग्रह (Anthology) है, जो ग्रामीण जीवन के सपनों, उतार-चढ़ावों और अस्तित्व के नाजुक लय को दर्शाती है।

 

“कनफूल”: दो दोस्त जो अपनी बेटियों के लिए सोने की बालियाँ खरीदने के लिए बांसुरी और खिलौने बेचते हैं, लेकिन महामारी के कारण रथ यात्रा रद्द होने से उनके सपने टूट जाते हैं।

 

“रंगमाटी”: दो भाइयों की कहानी, जिनमें से एक गाँव में जुड़ा रहता है जबकि दूसरा बैंगलोर में भविष्य तलाशता है।

 

“बैदाकरिया”: एक पारंपरिक गाँव बैंड का शांत दुख, जो दशहरा के दौरान प्रदर्शन के लिए अंतहीन कॉल का इंतजार कर रहा है।

 

“बिभागघर”: एक मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी जो शादी की तैयारी कर रहा है, जहाँ खुशी और अनकही चिंता का संतुलन है।

 

हर कहानी दूसरी कहानी का आईना है—छोटे सुखों और अचानक टूटने वाले दिल का एक मोज़ेक, जहाँ जीवन की सुंदरता और भेद्यता एक उत्तम लय में नृत्य करते हैं।

 

*निर्देशक का संवेदनशील नज़रिया*

 

जयपुर के रहने वाले निर्देशक विशाल पटनायक, एक ललित कला स्नातक और पूर्व कला शिक्षक हैं, जो चलती छवि में एक चित्रकार की संवेदनशीलता लाते हैं। उनका कैमरा गाँव की सड़क से उठती धूल, शाम के दीयों की चमक, और दो साँसों के बीच की खामोशी पर ठहरता है। पटनायक का मानना है, “मैं दिखाना चाहता था कि हमारे जैसे गाँवों में तो खामोशी की भी आवाज़ होती है।” दक्षिणी ओडिशा के शांत आदिवासी क्षेत्रों में फिल्माई गई यह कृति, अप्रवासन (migration), लचीलापन और पुराने-नए के टकराव जैसे सार्वभौमिक विषयों को छूती है।

 

*कौस्तव ड्रीमवर्क्स और AAO NXT की भूमिका*

 

इस गीतात्मक रचना के पीछे कौस्तव ड्रीमवर्क्स स्टूडियोज़ है, जो प्रामाणिक क्षेत्रीय कहानियों को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। स्टूडियो का स्पष्ट मिशन है—सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने वाली कहानियों को वैश्विक स्तर के शिल्प के साथ बताना।

 

निर्माता कौशिक दास, जो ओडिशा के पहले घरेलू ओटीटी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म AAO NXT के संस्थापक भी हैं, ने क्षेत्रीय सामग्री को दर्शकों तक पहुँचाने में क्रांति ला दी है। उनका यह दोहरा रोल परंपरा और तकनीक को जोड़ता है, जिससे क्षेत्रीय कहानियों को कलात्मक प्रशंसा और समकालीन प्रासंगिकता मिलती है।

 

“मालपूट मेलोडीज़” का चयन ओडिशा के फिल्म जगत के लिए एक बड़ी जीत है। “पापा बुका” जैसी फिल्मों के साथ, ओडिशा की सिनेमाई आवाज़ अब पहले से कहीं ज़्यादा गूंज रही है। यह फिल्म साबित करती है कि सिनेमा की आत्मा बजट या ग्लैमर में नहीं, बल्कि सच्चाई और कोमलता में निहित है।


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